कोरोना काल में चप्पलों की बिक्री ने पकड़ी रफ्तार, जूतों की मांग कम

कोरोना काल में चप्पलों की बिक्री ने पकड़ी रफ्तार, जूतों की मांग कम

कोरोना संकट और इसके कारण लगे लॉकडाउन से हमारे जीने के तरीके में कई बदलाव आए है। इस बदलाव के कारण हमारी जरूरतें भी बदल गई है। हमारे रहने, खाने, पहनावे में भी बहुत ज्यादा अंतर दिखाई देने लगा है। इस कोरोनावायरस के दौरान स्कूल, ऑफिस और मार्केट लगभग बंद ही रहे। पर इस बंद के दौरान फुटवियर इंडस्ट्री सेल्स पैटर्न में काफी बदलाव देखने को मिले है। दरअसल इस कोरोना संक्रमण कंकट के दौरान चप्पल की बिक्री बढ़ गई है जबकि ऑफिस फॉर्मल शूज और स्पोर्ट्स शूज की बिक्री काफी कम हो गई है। इसका कारण भी साफ तौर पर समझा जा सकता है कि कोरोनावायरस के दौरान लोग ज्यादातर घर में ही रह रहे है। उनका बाहर निकलना भी कम हो रहा है। जब लोग बाहर निकल भी रहे हैं तो सैंडल या चप्पल पहनना ही ज्यादा पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि कोरोना काल के पहले की तुलना में वर्तमान में चप्पल और सैंडल की बिक्री में 80 फ़ीसदी तक का बढ़ोतरी देखा जा रहा है। पर ऐसा नहीं है कि लोग सिर्फ घर में रह रहे है तो अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित नहीं है। लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित जरूर है पर स्पोर्ट्स शूज पहनने की बजाए सैंडल पहन कर ही वॉक करना ज्यादा पसंद कर रहे है। यही कारण है कि स्पोर्ट्स शूज के बाजार ने भी अभी रफ्तार नहीं पकड़ी है।रिलैक्सो फुटवियर के एमडी रमेश कुमार दुआ ने कहा कि स्कूल और ऑफिस बंद होने की वजह से अभी भी जूतों की बिक्री ने रफ्तार नहीं पकड़ी है। दूसरी ओर कोरोना संकट के दौरान flip-flop ने अच्छा प्रदर्शन किया है। यही कारण है कि जूतों की तुलना में इसका निर्माण ज्यादा किया जा रहा है। रमेश दुआ का यह भी कहना है कि ग्रामीण भारत में कोरोना का असर कम है। ऐसे में चप्पल और सैंडल की बिक्री पर असर कम हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में ही चप्पले ज्यादा बिकती है। बाटा के सीईओ संदीप कटारिया ने भी कहा कि वर्तमान समय में 80 फ़ीसदी वह चप्पलें बिक रही है जिनकी कीमत ₹500 से कम है। हालांकि ऑनलाइन मार्केट में 5000 तक के चप्पल और सैंडल बिक रहे है। 

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