जनजातीय शोध संस्थान एवं संस्कृति केन्द्र तथा संग्रहालय का लोकार्पण

देहरादून। केन्द्रीय जनजातीय कल्याण मंत्री अर्जुन मुण्डा एवं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने बुधवार को दून यूनिवर्सिटी रोड स्थित नवनिर्मित जनजातीय शोध संस्थान एवं संस्कृति केन्द्र तथा संग्रहालय का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने  संस्थान के नव निर्मित भवन का भी निरीक्षण किया। इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुण्डा ने जनजाति क्षेत्रों के समग्र विकास एवं शिक्षा के बेहतर प्रयासों के लिए उत्तराखण्ड सरकार की सराहना की। उन्होंने कहा कि राज्य में जनजाति क्षेत्रों के विकास से सम्बन्धित जो भी योजनायें राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को प्रेषित की जायेगी। उसके क्रियान्वयन में केन्द्र सरकार द्वारा पूरा सहयोग दिया जायेगा। उन्होंने देहरादून में जनजाति शोध संस्थान की स्थापना के लिये भी मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र का आभार जताया। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड का जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा के विकास का औसत राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है।  केन्द्रीय मंत्री श्री मुण्डा ने कहा कि यह शोध संस्थान राष्ट्रीय स्तर पर जनजाति विकास के लिये किये जा रहे प्रयासों जनजाति समाज द्वारा देश के प्रति किये गये योगदान के साथ ही जनजाति समाज के एतिहासिक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मनोविज्ञान वेल्यूज एथिक्स आदि को संजोने का कार्य करेगा ताकि हमारी भावी पीढ़ी अपने गौरवपूर्ण अतीत से परिचित हो सके। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह संस्थान देश का विश्वसनीय संस्थान बनेगा। उन्होंने जनजाति क्षेत्रों में शिक्षा के विकास पर और अधिक ध्यान दिये जाने के साथ ही वन भूमि क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों के लिये माइक्रो प्लान तैयार करने एवं विलुप्त हो रही जनजाति प्रजातियों को संरक्षित करने पर भी बल दिया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिह रावत ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों के विकास एवं कल्याण की दिशा में राज्य सरकार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि कालसी एकलव्य विद्यालय से 13 छात्र-छात्राओं को देश के प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश मिला है, यह प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति आश्रम पद्धति के विद्यार्थियों के भोजन भत्ते को 3000 रूपए प्रति माह से बढ़ाकर 4500 रूपए प्रति माह किया गया है। राज्य में आश्रम पद्धति के 16 राजकीय विद्यालय संचालित किये जा रहे हें, जिनमें लगभग 03 हजार बच्चे पढ़ रहे हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति छात्रों को रोजगार परक शिक्षा प्रदान करने के लिए तीन आईटीआई संचालित किये जा रहे हैं, जिनमें प्रतिवर्ष 400 छात्र-छात्राएं लाभान्वित हो रहे हैं। अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए चार छात्रावास संचालित किये जा रहे हैं, जिनमें 190 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। राज्य में आठवीं कक्षा तक के सभी जनजातीय छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जा रही है, इसमें उनके पारिवारिक आय की कोई सीमा निर्धारित नहीं रखी गई है।मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा ‘‘देश को जानो योजना’’ के तहत कक्षा 10 के टाॅप 25 रैंकर्स को भारत भ्रमण कराये जाने की व्यवस्था की गई है। इनका एक भ्रमण हवाई जहाज से भी होगा। इससे बच्चों को अपने देश के बारे में जानने का मौका मिलेगा। इससे उन्हें भारत के विभिन्न प्रान्तों की संस्कृति, इतिहास, रहन सहन, खान-पान आदि के बारे में जानने का भी मौका मिलेगा। मुख्यमंत्री प्रतिभा प्रोत्साहन योजना के तहत टाॅपर 25 बच्चों को सभी कोर्सेज में 50 प्रतिशत फीस की स्काॅलरशिप की व्यवस्था की गई है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि जयहरीखाल में गरीब मेधावी बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय बनाया जा रहा है। इस विद्यालय में प्रतिमाह आईएएस, आईएफएस, आईपीएस व सैन्य अधिकारियों द्वारा गेस्ट लेक्चर के रूप में अपनी सेवायें दी जायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में जनजाति के छात्रों को उच्च शिक्षा की बेहतर व्यवस्था के लिये भी प्रभावी प्रयास किये गये हैं। समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिये संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन की बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। उन्होंने कहा कि इस शोध संस्थान की स्थापना से जनजाति समाज की कला संस्कृति व परम्परा को पहचान मिलने के साथ ही समाज की एतिहासिक परम्पराओं को भी संरक्षित करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि राज्य में विलुप्त हो रही जनजातियों के संरक्षण की दिशा में भी पहल की जा रही है। इस अवसर पर उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत, विधायक विनोद चमोली, दिलीप रावत, चन्दनराम दास, मुकेश कोली, सचिव केन्द्रीय जनजाति मामले के सचिव दीपक खांडेकर, सचिव समाज कल्याण एल. फैनई, अपर सचिव राम विलास यादव निदेशक जनजाति कल्याण श्री सुरेश चन्द्र जोशी आदि उपस्थित थे।

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