बिना समर्पण के भक्ति असंभवः मोलूराम आर्य

देहरादून। भक्ति नाम समर्पण का अर्थात बिना समर्पण के भक्ति असंभव है। भक्ति से जीवन में निखार आता है। भक्त हमेशा भक्ति में तल्लीन रहता है। भक्त के जीवन में भक्ति भगवान के बीच की कड़ी है। भक्ति से प्रेम, दया, करूणा, न्रमता, सहनशीलता के गुण भक्त के जीवन में प्रकट होते हैं। इस आशय के प्रवचन संत निरंकारी मंडल के तत्वावधान में आयोजित रविवारीय सत्संग रैस्ट कैम्प निरंकारी संत्संग भवन में ज्ञान प्रचारक संत मोलूराम आर्य जी ने प्रवचन करते हुए व्यक्त किए।  उन्होंने सद्गुरू माता सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज के पावन सन्देश को देते हुये कहा कि भक्ति लोकी अजे न समझे, रब नू पाणा भक्ति है। भक्ति परमात्मा को जानकर करना ही श्रेष्ठ है जिसको जाना जा सकता है। जिसकी समझ में परमात्मा का ज्ञान आ जाता है वह परमात्मा के साथ में नाता जोड़ लेता हैं।  परमात्मा को जाने बगैर इंसान भ्रम भ्रांतियों में फंसा रहता है। जो सद्गुरू के साथ में बैठकर परमात्मा के ज्ञान की जानकारी करता है। उसके जीवन में भक्ति के गुण प्रकट होते हैं। निरंकार सदा सत्य है, सनातन है, अजर है, अमर है, अविनाशी है, कण-कण में विराजमान है। सद्गुरू ऐसे ज्ञान की दृष्टि देता है जो जीवन में अपनाने से सत्य की डगर मिल जाती है। उन्होंने कहा कि परमात्मा को जानने के बाद भक्त के जीवन में भक्ति का उदय होता है। भक्ति परमात्मा को जानकर की जाये वही सुखदायी होती है। परमात्मा निरांकार है, जानने योग्य है, जाना जा सकता है। जिसका भी नाता परमात्मा के साथ जुड़ता है उसके हृदय में मानवता के लिए दया, करूणा, प्रेम के भाव प्रकट होने लगते हैं। वह सारी दुनिया में विचरण करते हुए परमात्मा के साथ में नाता जोड़कर भक्तिभाव से जीवन जीता है। जिसका नाता परमात्मा जुड़ता उसके जीवन में, व्यवहार में, वाणी में और कर्म में एकत्व के भाव स्वयं ही प्रकट होने लगते हैं। जो इंसान भक्ति से विलुप्त होता है वह अहंकार के कारण गुरूर में चूर रहता है। वह अपने को दिखावटी व बनावटी आडंबरों से जुड़कर बाहरी दिखावा करता है। वह भक्ति से बहुत दूर होता है। भक्ति जीवन में समर्पण और निष्काम भाव को प्रकट करती है। जिसके हृदय सद्गुरू सुदीक्षा सविन्दर हरदेव जी महाराज की कृपा से ज्ञान रूपी नाम बस जाता है वह हमेशा निष्काम भाव से अपने जीवन को मानवता के लिए समर्पित कर देता है। उसका यह लोक भी सुहेला हो जाता है और परलोक सुहेला हो जाता है। सत्संग समापन से पूर्व अनेको सन्तो-भक्तों ने अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं का सहारा लेकर इस परमात्मा के ज्ञान की कृपाओं का विचार एवं गीतों के माध्यम से अपनी भावनाओं का इजहार किया। मंच संचालन राजेश निरंकारी जी ने किया।

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