देहरादून, (देवभूमि जनसंवाद न्यूज़) चमोली। अगर बड़े और जिम्मेदार अधिकारियों और विभागाध्यक्षों पर गाज गिरने लगे तो ऐसे हादसे और चमोली (एसटीपी- करंट हादसा ) जैसी घटनाएं न हों! परन्तु ये सरकारें और राजनैतिक दल ही हैं जो एक दूसरे की खिचाईं को शस्त्र अधिक स्थाई समाधान कम खोजते हैं। इन्हें तो बस लाशों पर खेल खेलना ही आता है, फिर बेचारी जनता तो बनी ही मरने के लिए हैं। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं हकीकत है जो कमोवेश देश अनेकों राज्यों में उत्तराखंड सहित देखने को मिल रही है। भले ही इन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं या भाजपा की।
ज्ञात हो कि यूपीसीएल की टीम और तकनीकी ज्ञान रखने वाले विद्वान एमडी तथा अप्रत्याशित और असम्भव सेवा विस्तार ले चुके निदेशक परिचालन सहित पूरी टीम ने अपने विभाग को कितनी आसानी से क्लीन चिट देते हुये पल्ला झाड़ लिया कि मीटर के आगे की जिम्मेदारी उपभोक्ता की होती है निगम की नहीं। पर इन्होंने पल्ला झाड़ने से पहले यह नहीं सोचा कि जिस एक उंगली को वे उपभोक्ता की ओर कर रहे हैं वहीं तीन उंगलियां उनके काले कारनामों की भी पोल खोल रहीं हैं। करोंड़ों रुपये की लागत से खरीदे गये लेटेस्ट टेक्नालॉजी के सुरक्षात्मक व बेहतर सुविधा प्रदान करने हेतु खरीदकर लगायें गये ये उपकरण उस अप्रत्याशित करंट दौड़ने की स्थिति में आटोमेटिक एक्टिव क्यों नहीं हुए? क्यों बिना प्रापर अर्थिंग के इतना हैवी कनेक्शन के चलता रहा और उसकी निरन्तर मानिटरिंग क्यों नहीं की जाती रही? दुर्घटना का कारण हैवी करंट क्यों बना, क्यों नहीं रिले आफ हुई और ब्रेकर ने काम करना बंद क्यों नहीं किया? क्या ये सबके सब यूं ही नुमाइश के लिए करोड़ों रूपये जन-धन के खर्च कर हत्या करने के लिए लगाए गये हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यूपीसीएल के एडवांस और माडर्न उपकरणों की खरीद में घोटाला और भ्रष्टाचार न हुआ होता और गुणवत्ता का ध्यान रखा गया होता तो ब्रेकर, रिले और सीटी पीटी तथा ट्रांसफार्मर की अर्थिंग तत्काल एकाएक दौड़े करंट पर स्वत ही एक्टिव हो जाते और शायद निर्दोष सोलह जानें नहीं जातीं तथा अनाथ न होते दर्जनों परिवार? परंतु यहां तो सीएम के पहुंचने के डर से लीपापोती करने यूपीसीएल एमडी टीम सहित पहुंचे और निष्पक्षता न करते हुए अपनी कुर्सी तथा अपनों को ही बचाने में लगे देखें गये! यही नहीं इस मामले में इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर सहित वे अधिकारी भी सजा योग्य बताये जा रहे हैं जो इन उपकरणों की खरीद में संलिप्त हैं? आखिर उन पर गाज क्यों नहीं, केवल एक प्रभारी अवर अभियंता ही क्य इस पूरे हादसे का जिम्मेदार है?
उल्लेखनीय यहां यह भी वर्तमान एमडी के कार्यकाल में ही करोड़ों करोड़ों रुपये को मेंटीनेंस के नाम पर खर्च दिखाकर बंदरबांट किया जा रहा है तथा अपने चहेते अधिकारियों के क्षेत्रों में बिना आवश्यकता और उपयोगिता के ही एबीसी कंडक्टर्स व केबिल के काम भी अपनी ही चहेती व फाईनेंसर्स कम्पनी/ कान्ट्रैक्टर्स से कराये जा रहे हैं? और जहां वास्तव में एबीसी कंडक्टर्स की आवश्यकता हैं उन घनी आवादी वाले और सम्भावित बिजली चोरी वाले क्षेत्रों में नहीं? एलटी और एचटी लाईनों के प्रोटेक्शन में फाइनल प्रोटेक्टर था पोल्स की हाईट तथा अन्य उपयोगी और आवश्यक कार्य केवल इस बजह से न कराया जाना कि वहां काली दाल नहीं गल सकेगी भी गम्भीर जांच का विषय है!
क्या उत्तराखंड के सीएम जो ऊर्जा मंत्री भी हैं ऊर्जा निगमों में व्याप्त भ्रष्टाचार और घोटालों की खरीद के इन निष्क्रिय और हत्यारें उपकरणों पर कोई सख्त रुख गम्भीरता से अपनाएंगे या फिर जनता के तात्कालिक जख्म पर मरहम लगाने हेतु दो विभागों के दो अधिकारियों के निलम्बन के एक्शन को ही पर्याप्त मान कर इतिश्री समझ लेंगे?