तो क्या राजधानी में अतिक्रमण को लेकर दून के पूर्व जिलाधिकारी हाईकोर्ट को गुमराह करते रहे? वर्ष 2013 और 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारियों ने हाईकोर्ट में बाकायदा शपथ पत्र देकर बताया था कि शहर के फुटपाथों से 80 फीसदी अतिक्रमण हटाया जा चुका है। साथ ही दोनों जिलाधिकारियों ने शपथ पत्र में दावा किया था कि बाकी अतिक्रमण को हटाने के लिए जल्द नीति बनाई जाएगी। लेकिन, इसके बाद कोर्ट कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में न केवल डीएम के शपथ पत्रों (एफिडेविट) को झुठलाया बल्कि शहर में अतिक्रमण को लेकर विस्तृत रिपोर्ट भी सौंपी। अतिक्रमण पर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया था और 18 जून को चार सप्ताह में शहर से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। दो सिंतबर 2013 को तत्कालीन जिलाधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया था। उन्होंने बताया कि दो सिंतबर 2013 को दिए गए हाईकोर्ट के निर्देशों के क्रम में राजधानी देहरादून के फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने के लिए एक टीम का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि फुटपाथ से 80 फीसदी अतिक्रमण हटा दिया गया है, जिसकी उन्होंने वीडियो सीडी भी शपथ पत्र के साथ कोर्ट को सौंपी थी। उन्होंने यह भी कहा कि अगर इसके बाद कोई फुटपाथ पर अतिक्रमण करने का प्रयास करता है तो उसे तुरंत हटा दिया जाएगा। जिलाधिकारी ने यह भी बताया कि नगर निगम को अतिक्रमण करने वालों की सूची तैयार करने के निर्देश दिए थे। जिसके आधार पर प्रशासन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ लोक संपत्ति विरुपण अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सके, लेकिन निगम ने यह सूची तैयार कर अभी तक नहीं सौंपी है। 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रेश कुमार यादव ने कोर्ट में प्रति शपथ पत्र (काउंटर एफिडेविट) दाखिल कर बताया कि अतिक्रमण हटाने के लिए संयुक्त कार्ययोजना बनाने के लिए 10 जुलाई 2014 को प्रशासन, नगर निगम, पुलिस, बिजली, सिंचाई, लोनिवि अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक बुलाई गई है। उन्होंने 2013 में तत्कालीन जिलाधिकारी बीवीआरसी पुरुषोत्तम की ओर से दिए गए शपथ पत्र को सही बताते हुए कार्रवाई की पुष्टि की। खास बात यह है कि इस शपथ पत्र में उन्होंने वर्ष 2014 में बैठक आयोजित करने के अलावा अतिक्रमण हटाने संबंधी कोई जानकारी नहीं दी। उन्होंने केवल 2013 में हुई कार्रवाई और उस दौरान हटाए गए अतिक्रमण की सूची ही कोर्ट के सामने रखी। हाईकोर्ट ने दो अप्रैल 2014 को बार एसोसिएशन देहरादून के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव शर्मा को कोर्ट कमिश्नर बनाया था। जुलाई 2014 में उन्होंने रिपोर्ट सौंपकर बताया कि चकराता रोड, सहारनपुर रोड, नेहरू कॉलोनी, राजपुर रोड, करनपुर बाजार, आराघर और धर्मपुर क्षेत्र, हरिद्वार रोड, पलटन बाजार, डिस्पेंसरी रोड, हनुमान चौक, सरनीमल बाजार, तहसील और जामा मस्जिद, प्रेमनगर कैंट, सुभाष रोड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र का विस्तार से वर्णन भी किया। उन्होंने बताया कि प्रेमनगर बाजार में 30 से 40 फुट चौड़ी सड़क है, लेकिन अवैध कब्जों और निर्माण के कारण यह आठ से 10 फुट रह गई है। शहर में ठेली, रेहड़ी, फड़ जैसे अस्थाई अतिक्रमण के साथ ही बड़े पैमाने पर स्थाई और पक्का अतिक्रमण भी किया गया है। कई जगह पर ढाबों के तंदूर तक फुटपाथ पर लगाए गए हैं। मुझे याद नहीं मैंने उस समय काउंटर एफिडेविट में क्या लिखा था। इसके बारे में वर्तमान जिलाधिकारी ही सही जानकारी दे पाएंगे।
– चंद्रेश कुमार यादव, पूर्व जिलाधिकारी देहरादून
काफी पुराना मामला है। जहां तक मुझे याद है मैंने जो शपथ पत्र दिया था, वह राजपुर रोड पर अतिक्रमण को लेकर था न कि पूरे देहरादून को लेकर।
– बीवीआरसी पुरुषोत्तम, पूर्व जिलाधिकारी (वर्तमान में भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत)
हाईकोर्ट की ओर से कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए जाने के बाद मैंने शहर की विभिन्न सड़कों का निरीक्षण कर जायजा लिया। अधिकतर जगहों पर अतिक्रमण मिला। इसकी रिपोर्ट मैंने होईकोर्ट को सौंप दी थी।
– राजीव शर्मा, तत्कालीन कोर्ट कमिश्नर