उत्तराखंड के इतिहास में भ्रष्टाचार पर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई

NH-74 Scam

D.NEWS DEHRADUN उत्तराखंड के इतिहास में त्रिवेंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार पर सबसे बड़ी चोट की है। चौतरफा दबाव के बावजूद सरकार ने तेवर नहीं बदले और कार्रवाई कर नौकरशाहों के साथ आईपीएस, आईएफएस और अन्य अफसरों को भी कड़ा संदेश दिया। राज्य में एनएच-74 अब तक के सबसे बड़े घपले के रूप में सामने आया।

कुमाऊं के तत्कालीन कमिश्नर डी सेंथिल पांडियन की जांच में घपले का दायरा 300 करोड़ रुपये तक पहुंचा था, जो अब एसआईटी जांच में 500 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। अफसरों ने सिंडिकेट बनाकर जिस तरह सरकारी खजाने की लूटपाट की पहले ऐसा कोई मामला शायद ही देखने को मिले। राज्य के इतिहास में अब तक देखने में आया कि घपले-घोटालों में छोटी-मोटी कार्रवाई के बाद सरकारें मामलों को ठंडे बस्ते में डाल देती थीं। जबकि इस घोटाले में अब तक दो आईएएस, सात पीसीएस के अलावा दर्जनभर से ज्यादा अन्य कर्मचारी सस्पेंड हो चुके हैं। त्रिवेंद्र सरकार ने जो तेवर दिखाए हैं, उसमें अफसरों के लिए बहुत कड़ा संदेश भी है।

त्रिवेंद्र रावत ने 17 मार्च, 2017 को सीएम पद की शपथ लेने के एक हफ्ते बाद ही इस घपले में छह पीसीएस अफसरों सस्पेंड कर दिया था, जबकि एक अन्य पर बाद में कार्रवाई हुई। सरकार ने इस मामले के सीबीआई जांच की सिफारिश की, लेकिन इसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का पत्र आड़े आ गया। इसके बावजूद सरकार ने एसआईटी ने पर भरोसा जताते हुए इस घपले को अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब रही।

दोनों आईएएस अफसरों ने मांगा था एक मौका
एसआईटी की जांच के दायरे में आने के बाद दोनों आईएएस ने सरकार से एक मौका मांगा था। दोनों ने मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह व अपर प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी के समक्ष पक्ष भी रखा। एसआईटी ने करीब 16 मामलों में डॉ.पंकज कुुमार पांडेय और चंद्रेश यादव को दोषी माना था। इसी आधार पर पूछताछ की अनुमति मांगी थी। सरकार ने इन आरोपों के क्रम में दोनों को नोटिस भेज पक्ष मांगा था। सूत्रों ने बताया कि दोनों अफसरों ने अपने जवाब में कहा कि था कि उनके कार्यकाल के दौरान ऑर्बिट्रेशन में जो मामले आए थे, उनका तो भुगतान ही नहीं हुआ था, तो फिर एसआईटी ने कैसे तय कर लिया कि करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ है। साथ ही दोनों ने सरकार से एक मौका भी मांगा था। इसके पीछे तर्क दिया कि ऑर्बिट्रेशन एक्ट के अनुसार ही उन्होंने वाद निस्तारित किए थे। यदि कोई फैसले से संतुष्ट नहीं था तो उन्हें जिला जज या फिर हाईकोर्ट में जाने का अधिकार था, पर उनके निस्तारित वादों में किसी ने अपील नहीं की लेकिन उनकी ये दलीलें काम नहीं आईं।

25 गुना तक बंटा था मुआवजा
अफसरों ने इस घपले में जो अंधेरगर्दी और लूट मचाई, वह वाकई हैरत करने वाली है। उदाहरण के तौर पर जिस जमीन का वास्तविक बाजारी मूल्य 25 लाख था, अफसरों के सिंडीकेट ने काश्तकारों और माफिया के साथ मिलीभगत कर उसके रेट 20 से 25 गुना ज्यादा तय कर दिए। ऐसे मामलों में यह रकम अफसर, माफिया और काश्तकारों के जेबों तक पहुंची।

ये पीसीएस भी हो चुके हैं सस्पेंड
एनएच -74 घपले में सात पीसीएस अफसर भी सस्पेंड हो चुके हैं। इनमें सुरेंद्र सिंह जंगपांगी, अनिल कुमार शुक्ला, दिनेश प्रताप सिंह, जगदीश लाल, भगत सिंह फोनिया, एनएस नगन्याल और तीर्थपाल सिंह शामिल हैं। जबकि पीसीएस हिमालय सिंह मर्तोलिया पर रिटायरमेंट के बाद कार्रवाई हुई, वे जनवरी, 17 में सेवानिवृत्त हुए थे। ये सभी विभिन्न समय में ऊधमसिंहनगर जनपद में तैनात रहे।

सचिव प्रभारी डॉ.पंकज कुमार पांडेय ने बताया कि- मैं दिल्ली में हूं। कार्रवाई की जानकारी है, हालांकि ये कार्रवाई किस आधार पर और क्यों की गई है ये लौटने के बाद पता चल पाएगा। सरकार ने जो भी किया होगा नियम के अनुसार ही किया होगा। मुझे आगे जो करना होगा वो कार्रवाई की रिपोर्ट देखने के बाद करूंगा।

अन्य चर्चित घोटाले
पटवारी भर्ती घपला
वर्ष 2002 में पौड़ी में हुई पटवारी भर्ती में  बड़े पैमाने पर घपला होने की शिकायतें मिली थी। जिन अभ्यर्थियों ने आवेदन पत्र ही नहीं भरे थे उनका तक चयन कर लिया गया। इस घपले में तत्कालीन जिलाधिकारी एसके लांबा की भूमिका पर सवाल उठे थे और सरकार ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। बाद में उन्हें बर्खास्त ही कर दिया था।

दारोगा भर्ती घपला
उत्तराखंड के वजूद में आने के बाद पहली बार हुई दारोगा भर्ती का भी विवादों से पीछा नहीं रहा। आईपीएस अफसरों ने अपने चहेते ऐसे सात अभ्यर्थियों का चयन कर दिया था जो मैरिट में निचले पायदान पर थे। इस मामले की सीबीआई जांच होने पर तत्कालीन अपर पुलिस महानिदेशक (प्रशासन) आरके मित्तल को निलंबित किया गया था।

ऋषिकेश आमबाग भूमि आवंटन
टिहरी बांध विस्थापितों के लिए ऋषिकेश आमबाग भूमि आवंटन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई थीं। वर्ष 2013 में इस आवंटन में तत्कालीन पुनर्वास निदेशक व डीएम टिहरी डॉ.रंजीत सिन्हा की भूमिका पर सवाल उठे। विवाद बढ़ने पर सरकार ने सभी आवंटन निरस्त कर दिए थे। जांच के बाद सरकार ने आईएएस रंजीत सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई का प्रकरण डीओपीटी व संघ लोक सेवा आयोग को भेजा। इस पर उनके खिलाफ प्रतिकूल प्रविष्टि के साथ एक वेतन वृद्धि रोकने के आदेश दिए थे। हालांकि बाद में हरीश रावत सरकार ने उनके ये दोनों ही दंड माफ कर दिए थे।

जमीन घपला
कुमाऊं मंडल के यूएसनगर, नैनीताल, दून व हरिद्वार में पूर्व में भी जमीनों के नाम पर घपले हुए थे। आईएएस हरि चंद्र सेमवाल पर अपर आयुक्त कुमाऊं रहते हुए जमीनों के घपले मामले में निलंबन की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। हालांकि बाद में वे कैट से बहाल हो गए थे। वर्ष 2013-14 में सामने आए कुछ अन्य घपलों में पांच पीसीएस अफसरों पर भी कार्रवाई हुई थी।

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