उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्तराखंड सरकार द्वारा भू कानून के ड्राफ्ट को मंजूरी मिलने पर कड़ा विरोध जताया

देहरादून, (देवभूमि जनसंवाद न्यूज़) उत्तराखंड क्रांति दल की केंद्रीय मीडिया प्रभारी किरन रावत कश्यप जी द्वारा उत्तराखंड सरकार द्वारा भू कानून के ड्राफ्ट को मंजूरी मिलने पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सशक्त भू कानून की मांग की थी , ना की दिखावे वाले भू कानून की !! बिना मूल निवास के इस भू कानून का कोई औचित्य नहीं है !! एक तरफ तो सरकार उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की बात करती है और दूसरी तरफ यहां की सांस्कृतिक धरोहर उन्हीं का अस्तित्व समाप्त करने पर तुली हुई हैl संस्कृति का तात्पर्य मात्र अस्थाई राजधानी देहरादून की दीवारों को रंगने तथा सदन में पिछोड़ा पहन कर जाने तक ही रह गया है l यह बहुत सोची समझी साजिश के तहत भू कानून का ड्राफ्ट बनाया गया है l प्रथम दृष्टिया भू कानून के ड्राफ्ट के अध्ययन से प्रतीत होता है कि इसके अंतर्गत मूल निवासियों के अधिकार तो सुरक्षित नहीं अपितु बाहरी व्यक्ति किस प्रकार से इस राज्य में भूमि खरीद सकता है यह ध्यान में रखा गया है l उत्तराखंड राज्य में पूर्वांचल राज्यों की तरह इनर लाइन परमिट लागू होना चाहिए l 2007 में जिस वक्त माननीय दिवाकर भट्ट जी कबीना मंत्री थे ,उस वक्त दिवाकर भट्ट जी ने संशोधन कर यह प्रावधान कि बाहरी व्यक्ति राज्य में ढाई सौ वर्ग मीटर भूमि क्रय कर सकता है लागू किया था किंतु बाद में सरकार ने भू माफियाओं के हितों को ध्यान में रखते हुए उसे बदल दिया l किंतु अब जनता को दिखाने के लिए भू कानून में दोबारा से बाहरी व्यक्ति जीवन में सिर्फ एक बार उत्तराखंड में ढाई सौ वर्ग मीटर भूमि क्रय कर सकता है प्रावधान लाया गया है जबकि अब स्थिति अलग हो चुकी है उत्तराखंड राज्य की अधिकांशत पहाड़ी भूमि भू माफियाओं द्वारा क्रय की जा चुकी है l मैदानी जिलों को बाहर रखना स्पष्ट संकेत करता है की भू कानून को कितना लचीला बनाया गया है l उत्तराखंड क्रांति दल राज्य में अनुच्छेद 371 लागू करने की मजबूती से बात करता है तभी यहां के मूल निवासियों के अधिकार संरक्षित तथा यहां की संस्कृति का संरक्षण भली भांति हो सकेगा l अभी बात करते हैं तो हाल ही में UCC जैसा काला कानून उत्तराखंड में पारित किया गया** जिसके दो प्रावधान एक वर्ष निवास करने पर स्थाई निवासी बन जाना तथा दूसरा “सहवासी संबंध” का पंजीकरण वैध होगा l यह दोनों ही प्रावधान उत्तराखंड की संस्कृति के लिए संकट पैदा करने वाले हैं !! एक तरफ यहां के मूल निवासियों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन किया जा रहा है तथा दूसरी तरफ सहवासी संबंध जैसे कानून लाकर देवभूमि उत्तराखंड की संस्कृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है l पाश्चात्य सभ्यता को देवभूमि उत्तराखंड में लागू करना स्पष्ट तौर पर बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है l इस प्रावधान से देवभूमि उत्तराखंड में सामाजिक अव्यवस्था हो जाएगी परिवार नामक इकाई का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा तथा युवा नैतिक पतन की और बढ़ जाएंगे, जो कि हिंदू समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है l उत्तराखंड क्रांति दल इसका पूर्ण रूप से विरोध करता है तथा सरकार को स्पष्ट चेताना चाहता है कि उत्तराखंड को प्रयोगशाला ना बनाया जाए अन्यथा इसके घातक परिणाम होंगे l आगे उन्होंने विधानसभा में जो बजट पेश किया गया उस पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि 1,25,000 करोड़ के बजट में ना किसानों का ध्यान रखा गया है, ना ग्रहणियों का ध्यान रखा गया है, ना ही उत्तराखंड के विकास !! ना ही यहां की संस्कृति के संरक्षण, तथा ना ही यहां के शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार पर बात की गई है lमात्र वेतन तथा कर्जे में ही सारे बजट को निपटा दिया गया , जो की बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है l उत्तराखंड जैसे विषम भौगोलिक परिस्थिति तथा संवेदनशील राज्य के लिए राज्य के विकास का मॉडल बनाकर बजट पेश किया जाना चाहिए था , उत्तराखंड राज्य प्राकृतिक संपदाओं से परिपूर्ण राज्य हैl यहां पर चार धाम विद्यमान है तथा पांच नदियां यहां से बहती है lबजट में इन सब की अनदेखी की गई है जिसे स्पष्ट तौर पर अनुभवहीन बजट कहा जा सकता हैl डबल इंजन सरकार मात्र घोषणाएं करने वाली सरकार बनकर रह गई है, राज्य के विकास से इन्हें कोई लेना देना नहीं है l उन्होंने जनता से अपील की की जनता को अब समझना होगा कि देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के लिए क्षेत्रीय दल को आगे लाना ही होगा lअन्यथा देवभूमि उत्तराखंड अपराध भूमि कब बनेगी पता नहीं चलेगा

           

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