केदार नाथ की आपदा के 12 वर्ष बाद कितना बदला केदार नाथ

16/17 जून 2013 को चोराबाड़ी ताल के ध्वस्त होने से ऊफान पर आई मंदाकिनी के सैलाब ने केदारपुरी का भूगोल बदल दिया था। चारों तरफ तबाही का मंजर था।

देहरादून, (देवभूमि जनसंवाद न्यूज़) आपदा के थपेड़ों से जूझते हुए केदारनाथ धाम अब उठकर दौड़ने लगा है। यात्रा को नया आयाम मिलने के साथ ही धाम में प्रतिवर्ष यात्रियों की संख्या में इजाफा हो रहा है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य हो रहे हैं। तीन चरणों में केदारपुरी को मास्टर प्लान से नया रूप देते हुए सुरक्षित, सुंदर और संरक्षित किया जा रहा है। इन दिनों दूसरे चरण के कार्य जोरों पर किये जा रहे हैं।

16/17 जून 2013 को चोराबाड़ी ताल के ध्वस्त होने से ऊफान पर आई मंदाकिनी के सैलाब ने केदारपुरी का भूगोल बदल दिया था। चारों तरफ तबाही का मंजर था। मंदिर परिसर मलबे और बोल्डरों से पटा था। तबाही इस कदर हुई कि समूची केदारघाटी इसकी चपेट में आ गई है, जिससे हजारों लोग आहत हुए थे। आपदा के बाद लगभग तीन माह तक केदारनाथ में पूजा-पाठ भी बंद रहा। 11 सितंबर 2013 को केदारनाथ मंदिर में पुन: पूजा-अर्चना शुरू की गई, साथ ही केदारपुरी को फिर से जीवंत करने के लिए कार्ययोजना भी बनाई गई। मार्च 2014 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल के नेतृत्व में केदारनाथ पुनर्निर्माण के कार्य शुरू हुये।

निम ने पहले चरण में रामबाड़ा से केदारनाथ तक पहुंच के लिए मंदाकिनी नदी के दाई तरफ ने से नौ किमी रास्ता बनाया। इसके बाद, केदारनाथ में एमआई-17 हेलिपैड, एमआई-26 हेलिपैड के साथ ही अन्य कई निर्माण किये गये। वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ पुनर्निर्माण को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल किया और तीन चरणों में होने वाली निर्माण कार्यों की आधारशिला रखी। लगभग पांच सौ करोड़ की लागत से होने वाले कार्यों में मंदिर परिसर का विस्तार, मंदिर मार्ग का चौड़ीकरण, आदिगुरु शंकराचार्य की समाधिस्थल का पुनर्निर्माण, तीर्थपुरोहितों के भवन सहित अन्य कई निर्माण कार्य हैं।

आपदा के बाद बीते 12 वर्षों में केदारनाथ धाम आपदा की पीड़ा से उठकर दौड़ने लगा है। भले ही तबाही के निशा यहां आज भी मौजूद हैं। केदारनाथ में मौजूद वरिष्ठ तीर्थपुरोहित उमेश चंद्र पोस्ती, राजकुमार तिवारी, संतोष त्रिवेदी, विनोद शुक्ला, आनंद शुक्ला, रमाकांत शर्मा, अरूण प्रकाश बाजपेई का कहना है कि आपदा के मंजर को भुलाया नहीं जा सकता है। आज, भी वह दिन याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। उन हालातों में यकीन नहीं होता था कि कभी केदारनाथ में फिर से जीवन इस तरह से गुलजार होगा, लेकिन आज बाबा केदार की नगरी भक्तों से गुलजार हो रही है।
यात्रा को मिला आयाम
आपदा के बाद बीते एक दशक में केदारनाथ यात्रा को नया आयाम मिला है। आपदा के अगले वर्ष 2014 में बाबा केदार के दर्शन को सिर्फ 48 हजार श्रद्धालु पूरे यात्राकाल में धाम पहुंचे। इसके बाद, लोगों में विश्वास बढ़ा और यात्रा वर्ष दर वर्ष अपनी रफ्तार पकड़ने लगी। वर्ष 2019 में पहली बार धाम में दर्शनार्थियों का आंकड़ा दस लाख के पार पहुंचा। इसके बाद अगले दो वर्ष कोरोनाकाल में यात्रा सीमिति रही, लेकिन 2022 में बाबा केदार की यात्रा को नया आयाम मिला और दर्शनार्थियों का आंकड़ा 15 लाख के पार पहुंचा। वहीं, 2023 में 19 लाख और 2024 में 16 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किये। इस वर्ष भी 46 दिनों में यात्रा में 10 लाख 80 हजार से अधिक श्रद्धलु केदारनाथ में दर्शन कर चुके हैं।

अब भी दुश्वारियां तमाम
आपदा के 12 वर्ष बाद भी कई दुश्वारियां हैं, जिनका निस्तारण नहीं हो पाया है। केदारनाथ तक पहुंच के लिए सुरक्षित पैदल मार्ग बड़ी चुनौती बना है। पुराने रास्ते का पुनरोद्धार कार्य हो रहा है, पर कब पूरा होगा, कहना मुश्किल है। वहीं, वैकल्पिक मार्गों के लिए कार्ययोजना नहीं बन पाई है। आपदा पीड़ितों के हक-हकूकों के लिए नीति नहीं बन पाई है। साथ ही आपदा से प्रभावित गांवों की सुरक्षा आज भी भगवान भरोसे है।

अकेले जीवन जीने को मजबूर कई लोग
केदारनाथ आपदा में सबसे ज्यादा जनहानि केदारघाटी के देवली भणिग्राम में हुई थी। यहां 54 लोग काल का ग्रास बन गये थे। कई परिवारों की तीन-तीन पीढ़ियां आपदा में खत्म हो गई थी। आज भी यह परिवार इस दर्द से उभर नहीं पाए हैं। हां इतना जरूर है कि यहां की मातृशक्ति ने स्वयं कमर बांधकर आत्मनिर्भर होने का संकल्प लिया है। हस्तशिल्प के कार्य से महिलाएं अपनी आर्थिकी को नया रूप दे रही है।

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