D.NEWS DEHRADUN: विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क की जैव विविधता पर भी खतरा मंडरा रहा है। पार्क के आधे से अधिक हिस्से में पसर चुकी लैंटाना कमारा नामक झाड़ीनुमा वनस्पति ने न सिर्फ बाघों के आशियाने पर हमला बोला है, बल्कि दूसरी वनस्पतियां भी इसके गिर्द-गिर्द नहीं पनप पा रहीं।
दरअसल, टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन फॉर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के शासी निकाय की ओर से हाल में स्पष्ट किया गया था कि यदि जल्द ही लैंटाना उन्मूलन को कदम नहीं उठाए गए तो पार्क में बाघों का संरक्षण मुश्किल हो जाएगा। फाउंडेशन ने इस संबंध में विशेष प्रोजेक्ट के तहत युद्धस्तर पर कार्य करने का सुझाव दिया था, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बन पाई है।
कार्बेट नेशनल पार्क की ढिकाला, बिजरानी, झिरना, ढेला समेत लगभग सभी रेंजों में लैंटाना की झाड़ियों ने डेरा डाला हुआ है। वर्षभर खिलने और अपने आसपास दूसरी वनस्पतियों को न पनपने देने के गुण के कारण लैंटाना यहां की जैव विविधता के लिए खतरा बन गई है। साथ ही लगातार फैलती इसकी झाड़ियों के कारण बाघों का वासस्थल सिमट रहा तो घास के मैदान संकुचित होने से शिकार पर भी असर पड़ा है।
घास के मैदानों में लैंटाना के फैलाव से वहां शाकाहारी जानवरों की आवाजाही कम हुई है, जिस कारण बाघ के शिकार के अड्डे सिमटे हैं। कार्बेट फाउंडेशन भी पूर्व में इस पर गंभीर चिंता जता चुका है। लैंटाना उन्मूलन के मद्देनजर फाउंडेशन ने विशेष प्रोजेक्ट के लिए डीपीआर तैयार करने के निर्देश दिए थे। बावजूद इसके, लैंटाना के सफाये को कोई ठोस कार्ययोजना अभी तक आकार नहीं ले पाई है। हालांकि, लैंटाना उन्मूलन कार्बेट पार्क के वर्किंग प्लान का हिस्सा है, लेकिन इसके लिए वृहद स्तर पर कभी अभियान चला हो, ऐसा नजर नहीं आता। जानकारों के मुताबिक यदि कार्बेट में गले-गले तक पहुंच चुकी लैंटाना की समस्या के समाधान को जल्द कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में संकट अधिक गहरा सकता है।
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज का कहना है कि लैंटाना का तेजी से हो रहा प्रसार निश्चित रूप से चिंताजनक है। इसके उन्मूलन को प्रयास किए जा रहे हैं। जहां तक कार्बेट नेशनल पार्क की बात है तो वहां भी छोटे-छोटे स्तर पर लैंटाना को उखाड़ने का कार्य चल रहा है। इसमें और तेजी लाई जाएगी।