D.NEWS DEHRADUN : नवजात बच्चों की 22 अक्तूबर को मौत हो गई। माता-पिता उनके शव निजी अस्पताल में छोड़कर चले गए। अस्पताल ने दोनों शव मोर्चरी में रख दिए। कई दिन इंतजार के बाद परिजन शव लेने नहीं पहुंचे तो अस्पताल ने जिला प्रशासन को अंतिम संस्कार की अनुमति को पत्र लिखा। पर, प्रशासन ने सवा महीने मंजूरी मामला लटकाए रखा। अब बाल आयोग की मंजूरी से अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही है। शुक्रवार को बाल आयोग अध्यक्ष ऊषा नेगी ने सदस्य सीमा डोरा संग खुद अस्पताल का दौरा कर चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ब्रिगेडियर (रिटायर) विनय राय से जानकारी ली। उन्होंने बताया कि अस्पताल प्रबंधन की ओर से तीन बार जिला प्रशासन को चिट्ठी लिखी गई, पर अनुमति नहीं मिली। आयोग अध्यक्ष ने जिला प्रशासन की कार्यशैली पर नाराजगी जताई। उन्होंने अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिए कि इस बारे में वह ईमेल भेजें। आयोग बच्चों के अंतिम संस्कार की अनुमति देगा। अस्पताल के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी के मुताबिक, आयोग से बच्चों का अंतिम संस्कार करने की अनुमति मिल गई है। पटेलनगर पुलिस ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। इधर, डीएम एसए मुरुगेशन ने कहा कि अस्पताल प्रशासन की ओर से हमें बच्चों के अंतिम संस्कार प्रकरण के बाबत कोई सूचना नहीं दी गई थी। सीएमओ को भी जानकारी नहीं थी। अंतिम संस्कार की अनुमति देने या न देने की कोई बात तब होती, जब हमें बताया जाता।
जिला प्रशासन को तीन रिमाइंडर भेजे
श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल के वरिष्ठ जनसंपर्क अधिकारी भूपेंद्र रतूड़ी के मुताबिक, बीते 22 अक्तूबर को जीएमएस रोड निवासी नीतू ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया था, बाद में दोनों बच्चों की मौत हो गई थी। दंपति मृत बच्चों को अस्पताल में छोड़ चला गया था। पुलिस जांच में पता चला कि दंपति बिहार का रहने वाला था और वह शहर छोड़कर चला गया। इसके बाद बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए जिला प्रशासन को 22 अक्तूबर को पत्र और 15 नवंबर को रिमाइंडर भेजा गया, खुद जाकर भी निवेदन किया गया, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। 26 नवंबर को सीएमओ को अलग से पत्र भेजा गया। वहां से भी कोई रिस्पांस नहीं मिला।
संवेदनहीनता की हद : नेगी
अस्पताल में बच्चों के शवों को देखने पहुंची बाल आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी जिला प्रशासन की कार्यशैली से बेहद नाराज दिखीं। उन्होंने कहा कि अफसर खुद को सरकारी दामाद समझने लगते हैं। अपनी जिम्मेदारी कोई नहीं निभाता। सवा माह से बच्चों के शव मोर्चरी में रखे रहना संवेदनहीनता की हद है। जिला प्रशासन ने अनुमति नहीं दी तो क्या बच्चों के शव ऐसे ही सड़ते रहेंगे। हम उनके अंतिम संस्कार की अनुमति देंगे। हमें चाहे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना पड़े ऐसे लोगों को नहीं छोड़ेंगे, जो मानवता न निभाते हों।