D.NEWS DEHRADUN : दून लिटरेचर फेस्टिवल के समापन पर हिंदी साहित्य की आधारशिला माने जाने वाले भक्तिकाल, कहानी पाठ, कलम के इतर, दलित साहित्य, रेडियो की यादों से जुड़े सत्र में देश भर से पहुंचे साहित्यकारों ने अपने विचार साझा किए।
ओल्ड राजपुर के शहंशाही स्थित क्रिश्चियन रिट्रीट एंड स्टडी सेंटर में समय साक्ष्य और अर्श सामाजिक संस्था की ओर से आयोजित लिटरेचर फेस्ट में शनिवार को कलम से इतर – साहित्यकारों के जीवन के किस्से सत्र में सूरज प्रकाश ने कई चर्चित लेखकों के जीवन के किस्सों का जिक्र किया। उन्होंने लेखकों के साथ घटी घटनाओं का जिक्र करते हुए लेखकों के अवसाद भरे जीवन का जिक्र किया। कहा कि लेखकों का शराब के करीब होना दुखदायी है। इससे साहित्य जगत को बड़ी हानि हुई है, जीवन में अवसादों के चलते करीब 150 साहित्यकार मौत को गले लगा चुके हैं। जिनमें तीन नोबल पुरस्कार विजेता तक शामिल थे। कल्लोल चक्रवर्ती ने जनता के बीच अनुवादों और भाषा की महत्ता साझा की। कहा कि अंग्रेजी साहित्य दूसरे साहित्य के मुकाबले ज्यादा तथ्यपरक होते हैं। जिससे उसकी पठनीयता बढ़ती हैं। भारती जोशी की एकल नाटक प्रस्तुति को दर्शकों ने पसंद किया। उन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर की कहानी पत्नी का पत्र के माध्यम से पुरुष प्रधान समाज में महिला की व्यथा उठाई। डा. सुशील उपाध्याय की पुस्तक पत्रकारिता का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर ब्रजेंद्र त्रिपाठी, दिनेश प्रताप सिंह, सविता मोहन, राम विनय सिंह, इंद्रजीत सिंह, राजू महर, वेद विलास उनियाल, विनय ध्यानी, नवनीत गैरोला, सुनील पंत, विनोद बगियाल आदि लोगों ने विभिन्न सत्रों में अपनी बात रखी।
सोशल मीडिया ने साहित्य को बढ़ावा दिया
साहित्यकारों का मानना है कि सोशल मीडिया साहित्य को बढ़ावा देने का बड़ा हथियार है। आज तकनीकि सुविधाओं ने प्रचार आसान कर दिया है। दुनिया के किसी कोने में कोई किताब विमोचन होता है, तो मिनटों में दुनिया के दूसरे कोने तक उसकी चर्चा होने लगती है। कोई व्यक्ति किसी किताब को पढ़ कर उसकी समीक्षा सोशल मीडिया पर साझा करता है तो उससे प्रेरित होकर बाकी लोग भी किताब को खरीदने पहुंचते हैं। यहां तक कि कई बार तो किताबों का विमोचन ही सोशल मीडिया के ऑनलाइन मंचों पर होने लगा है