इसकी बड़ी वजह यह भी कि दून एक तरह से मिनी मेट्रो के रूप में संचालित एलआरटी की दिशा में ही आगे बढ़ रहा है। क्योंकि दून मेट्रो परियोजना भी काफी हद तक इसी सिस्टम पर आधारित है। खास बात यह भी कि न सिर्फ इसकी डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार की जा चुकी है, बल्कि जर्मनी की तर्ज पर एलआरटी सिस्टम विकसित करने पर डीपीआर में अधिक संशोधन भी नहीं करना पड़ेगा।
दल का हिस्सा रहे मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) जितेंद्र त्यागी के मुताबिक, भ्रमण कार्यक्रम की रिपोर्ट तैयार की जा रही है। भ्रमण के दौरान व उसके बाद दल के सदस्यों के बीच विभिन्न ट्रांसपोर्ट सिस्टम को लेकर काफी विचार विमर्श भी किया गया। सहमति, सुझावों व संस्तुतियों को लेकर तैयार की जा रही रिपोर्ट जल्द मुख्यमंत्री को सौंप दी जाए
इसके बाद संभव है कि कुछ मंत्रियों की कमेटी उसका परीक्षण करे और फिर रिपोर्ट को प्रस्ताव की शक्ल में कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा।
आधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर इस तरह परखा गया दून को
जर्मनी
- यहां फ्रैंकफर्ट व कॉलोन शहर में लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम (एलआरटीएस) की तकनीक को देखा गया। कॉलोन शहर में इसका संचालन व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। जहां भीड़-भाड़ अधिक है, वहां करीब आठ किमी भाग पर यह भूमिगत भी संचालित की जा रही है। जबकि खुले भाग पर सड़क के बीचों-बीच ट्रैक बनाकर इसे चलाया जा रहा है। दून की प्रकृति के लिहाज से इस विकल्प को सबसे उपयुक्त पाया गया। इस भ्रमण से पहले फरवरी माह में उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के एमडी जितेंद्र त्यागी ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के अधिकारियों के साथ जर्मनी का भ्रमण कर इस सिस्टम को करीब से समझा था।
लंदन
- पीआरटीएस: पर्सनलाइज्ड रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम को पॉड टैक्सी के रूप में भी जाना जाता है। इसका संचालन लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर किया जा रहा है। भ्रमण दल ने तय किया कि मिनी मेट्रो तक पहुंचने के लिए पॉड टैक्सी का प्रयोग जाम से निजात दिला सकता है।
- रोपवे-केबल कार: ट्रांसपोर्ट सिस्टम में इसका प्रयोग भी मुफीद साबित हो सकता है। हालांकि, इसका प्रयोग यहां किस रूप में किया जा सकता है, इसको लेकर स्पष्ट मत नहीं बन पाया।
- लंदन मेट्रो: लंदन मेट्रो की व्यवस्था को भी दल ने देखा। हालांकि दून के लिहाज से इसे वृहद पाया गया और इसके विकल्प पर विचार न करने का निर्णय लिया गया। जर्मनी के एलआरटी की यह भी खासियत एलआरटीएस आधारित मेट्रो रेल 50 मीटर के मोड़ पर भी आसानी से संचालित की जा सकती है। क्योंकि दून के विभिन्न कॉरीडोर में मोड़ भी आ रहे हैं। ऐसे में यदि इस व्यवस्था को अपनाया जाएगा तो जमीन अधिग्रहण के बड़े पेंच से भी बचा जा सकेगा। क्योंकि तब ट्रैक को सीधा रखने के लिए जमीन का अधिग्रहण नहीं करना पड़ेगा। जर्मनी के बैंक ने दिया ऋण का भरोसा एमडी जितेंद्र त्यागी के मुताबिक यदि दून में जर्मनी की तर्ज पर एलआरटीएस मेट्रो का संचालन किया जाता है तो वहां के केएफडब्ल्यू बैंक ऋण भी उपलब्ध कराएगा। इस लिहाजा से कॉर्पोरेशन जर्मनी से तकनीकी स्तर पर भी सहायता ले सकता है।
दून की इस मौजूदा मेट्रो परियोजना में होगा आंशिक संशोधन
पहला फेज
- आइएसबीटी-कंडोली/राजपुर (लागत करीब 1720 करोड़ रुपये)
- एफआरआइ-रायपुर (1612 करोड़ रुपये)
दूसरा फेज
- हरिद्वार-ऋषिकेश (4740 करोड़ रुपये)
- आइएसबीटी-नेपाली फार्म (5026 करोड़ रुपये)
स्मार्ट सिटी को लेकर स्वीडिश कंपनियों ने दिया प्रस्तुतीकरण
स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत स्वीडन की सात कंपनियों ने अपनी नवीन प्रौद्योगिकियों पर प्रस्तुतीकरण दिया। कंपनियों ने बताया कि आइटी तकनीक, शहरी पर्यावरणीय सेवाओं, स्मार्ट ऊर्जा, स्मार्ट अग्निशमन में किस तरह बेहतर काम किया जा सकता है।
गुरुवार को यह प्रस्तुतीकरण देहरादून स्मार्ट सिटी लि. कार्यालय में सीईओ शैलेष बगोली की मौजूदगी में दिया गया। प्रस्तुतीकरण का आयोजन स्वीडिश सरकार के उपक्रम बिजनेस स्वीडन और उत्तराखंड में उसके सहयोगी नॉलेज पार्टनर गति फाउंडेशन के सहयोग से किया गया। सीईओ बगोली ने इस कार्यक्रम को सकारात्मक पहल बताते हुए बिजनेस स्वीडन व गति फाउंडेशन का आभार जताया। कार्यक्रम में अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. आशीष श्रीवास्तव, बिजनेस स्वीडन की कार्यकारी अधिकारी अंजलि भोला, गति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष अनूप नौटियाल आदि उपस्थित रहे।