
देहरादून: (देवभूमि जनसंवाद न्यूज़)/ दिल्ली रूस-यूक्रेन संकट पर भारत के रुख़ की चर्चा काफ़ी हो रही है. कई लोग भारत के रुख़ पर सवाल उठा रहे हैं तो कई लोग इसे बिल्कुल सही ठहरा रहे हैं,
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के दो इलाक़े दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दे दी थी. इस पर मंगलवार को भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपना पक्ष रखा था,
इन दोनों इलाक़ों को रूस समर्थित विद्रोहियों ने पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ दोनेत्स्क और लुहांस्क घोषित किया था और 2014 से ही ये यूक्रेन से लड़ रहे हैं. इसके साथ ही पुतिन ने रूसी सैनिकों को भी इन इलाक़ों में जाने का आदेश दिया था,
पुतिन के इसी फ़ैसले को लेकर मंगलवार को यूएन सुरक्षा परिषद की बैठक हुई थी. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने यूएन सुरक्षा परिषद में भारत का पक्ष रखते हुए सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की थ,
टीएस तिरुमूर्ति ने कहा था, ”यूक्रेन की पूर्वी सीमा पर चल रहे घटनाक्रम और रूस की ओर से की गई घोषणा पर भारत की नज़र है. रूस और यूक्रेन की सीमा पर बढ़ रहा तनाव गहरी चिंता की बात है. इन घटनाओं से इलाक़े की शांति और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है. सभी देशों के सुरक्षा हितों और इस इलाक़े में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता के लिए तनाव को तुरंत कम करने की आवश्यकता है,
यूरोपियन काउंसिल के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर काम करने वाले रिचर्ड गोवान ने ट्वीट कर कहा है, ”ग़ैर-नेटो देशों में भारत सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन संकट पर बोला. भारत ने कूटनीति के ज़रिए तनाव कम करने की तमाम बातें कीं, लेकिन रूस की न तो निंदा की और न ही यूक्रेन की संप्रभुता का ज़िक्र किया,
रिचर्ड ने लिखा है, ”31 जनवरी को यूक्रेन पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वोटिंग हुई थी तब भारत के साथ कीनिया भी वोटिंग से बाहर रहा था. लेकिन मंगलवार को कीनिया ने अचानक अपनी लाइन बदल ली. कीनिया ने कड़े शब्दों में पुतिन की निंदा की है. कीनिया ने कहा है कि पूर्वी यूक्रेन के हालात अफ़्रीका में उपनिवेशवाद के बाद के सरहद पर तनाव की तरह है. कीनिया ने कहा कि अफ़्रीकी देशों को औपनिवेशिक सीमा क्यों मानना चाहिए जब रूस नहीं मान रहा है.”
यूक्रेन संकट पर भारत के रुख़ को लेकर लोगों की राय बँटी हुई है. भारत के अहम अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू के अंतरराष्ट्रीय मामलों के संपादक स्टैनली जॉनी ने लिखा है, ”यूक्रेन मामले में रूस को लेकर भारत के रुख़ की जो आलोचना कर रहे हैं, वे बुनियादी तथ्यों की उपेक्षा कर रहे हैं. रूस और भारत के गहरे रिश्ते हैं और भारत अपने हितों के ख़िलाफ़ फ़ैसला नहीं ले सकता.”
स्टैनली कहते हैं, ”जहाँ तक नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की बात है तो रूस ने क्राइमिया को अपने में मिलाया और डोनबास को मान्यता दी तो बहुत ही तीखी अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया आई, लेकिन इसराइल ने गोलान या पूर्वी यरुशलम को मिलाया तो उसे मान्यता मिल गई. तुर्की ने सीरिया के क्षेत्र पर क़ब्ज़ा किया तो बात तक नहीं हुई. हमें असली राजनीति पर बात करनी चाहिए.”