D.NEWS देहरादून
उत्तराखंड में निर्जन हो चुके 1702 गांव अब भुतहा नहीं रहेंगे। प्रदेश सरकार की कोशिशें रंग लाई तो इन्हें न सिर्फ पर्यटन बल्कि स्थानीय संसाधनों पर आधारित छोटे उद्यम, सामूहिक खेती, बागवानी के लिहाज से विकसित किया जाएगा। इसके लिए सरकार में मंथन चल रहा है। इन गांवों को कैसे आबाद किया जाएगा और वहां कौन सी योजनाएं उपयुक्त रहेंगी, इसके लिए ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग कार्ययोजना तैयार करेगा। यही नहीं, इस पहल में गांवों को अलविदा कह चुके लोगों के साथ ही प्रवासियों का सहयोग लेने पर भी विचार चल रहा है।
ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट पर गौर करें तो राज्य के सभी जिलों से पलायन हुआ है, लेकिन सबसे अधिक मार पर्वतीय जिलों पर पड़ी है। वर्ष 2011 की जनगणना में राज्य में खंडहर में तब्दील हो चुके भुतहा गांवों (निर्जन गांव) की संख्या 968 थी। आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 2011 के बाद 734 और गांव निर्जन हो गए है। यानी अब ऐसे गांवों की संख्या बढ़कर 1702 हो गई है। भौगोलिक लिहाज से प्रदेश के सबसे बड़े पौड़ी जिले में सबसे ज्यादा 517 गांव निर्जन हुए हैं।
साफ है कि प्रदेश में भुतहा हो रहे गांवों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में इन्हें फिर से आबाद करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन इससे पार पाने की दिशा में मंथन प्रारंभ हो गया है। पलायन आयोग ने इसकी कवायद प्रारंभ कर दी है। इस सिलसिले में तैयार होने वाली कार्ययोजना के मद्देनजर आयोग ने भुतहा गांवों में खंडहर हो चुके घरों, भूमि के आंकड़े जुटाने के साथ ही वहां कौन-कौन सी गतिविधियां संचालित हो सकती हैं, इसकी जानकारी जुटानी प्रारंभ कर दी है।
उत्तराखंड में घोस्ट विलेज
जिला, संख्या
पौड़ी, 517
अल्मोड़ा, 162
बागेश्वर, 150
टिहरी, 146
हरिद्वार, 132
चंपावत, 119
चमोली, 117
पिथौरागढ़, 98
टिहरी, 93
उत्तरकाशी, 83
नैनीताल, 66
ऊधमसिंहनगर, 33
देहरादून, 27
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‘पलायन की मार से त्रस्त गांवों के लिए आयोग कार्ययोजना तैयार करने में जुटा है। पहले चरण में ऐसे गांवों को लिया गया है, जहां आबादी दो से 10 के बीच रह गई है। इसके साथ ही घोस्ट विलेज को आबाद करने की कार्ययोजना पर मंथन चल रहा है। इनमें पर्यटन, खेती, बागवानी, छोटे उद्यम समेत अन्य विकल्पों को अपनाने पर विचार हो रहा है। कार्ययोजना तैयार कर इसे सरकार को सौंपा जाएगा।’-डॉ.एसएस नेगी, उपाध्यक्ष, ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग उत्तराखंड