चमोली, उत्तराखंड स्थित नीती घाटी की छह ग्रामसभाओं के हर गांव में घर-घर पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं और बिखर उठती है लोकरंग की अनूठी छटा। प्रत्येक गांव से दुंफूधार तक भव्य झांकी के साथ प्रभातफेरी निकाली जाती है। 1947 से यह सिलसिला शुरू हुआ। नीती घाटी के लोग आज भी पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ स्वतंत्रता दिवस का उत्सव मनाते हैं। ठीक वैसा जैसा आजादी मिलने के बाद पहली बार मनाया गया था। वह भी बिना किसी सरकारी मदद के।
इस दिन घाटी के हर घर में भांति-भांति के पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। हर गांव से ग्रामीण गाजे-बाजों के साथ प्रभातफेरी के रूप में गमसाली गांव के दुंफूधार में एकत्रित होकर तिरंगा फहराते हैं। फिर शुरू होता है सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दौर और देशभक्ति के गीतों से गूंज उठती है पूरी घाटी। यह ऐसा मौका है, जब पलायन के चलते गांवों में वीरान पड़े घर भी आबाद हो जाते हैं।
गुजरात में मुख्य वन संरक्षक रहे बाम्पा गांव के 70 वर्षीय रमेश चंद्र पाल सेवानिवृत्त के बाद अहमदाबाद में रह रहे हैं। लेकिन आजादी का पर्व मनाने गांव लौट आए हैं। गमसाली निवासी सेवानिवृत्त आइएफएस अधिकारी विनोद फोनिया भी गांव लौट आए हैं। कहते हैं, स्वतंत्रता दिवस सीमा क्षेत्र के लिए न केवल लोक उत्सव बन चुका है, बल्कि यह नीती घाटी की छह ग्रामसभाओं की एकता का भी प्रतीक है।
एसबीआइ से सेवानिवृत्त बाम्पा निवासी 63 वर्षीय बच्चन सिंह पाल बताते हैं कि 15 अगस्त 1947 को दिल्ली में लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराए जाने की जानकारी सीमांत गांवों के लोगों को एक दिन बाद मिली थी। उस दिन लोगों ने अपने घरों में दीप जलाए और फिर पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर गमसाली के दुंफूधार में एकत्र हो स्वतंत्रता की खुशियां मनाईं।
स्वतंत्रता दिवस पर सभी छह ग्रामसभाओं के ग्रामीणों की अपनी अलग वेशभूषा और झांकी होती है। सभी झांकियों के प्रभातफेरी के साथ दुंफूधार पहुंचने पर वहां मुख्य अतिथि के हाथों ध्वजारोहण किया जाता है। इसके बाद प्रत्येक गांव अपनी अलग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देता है।