मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का ‘खेल’ बिगाड़ सकते है ‘ये’

  Madhya Pradesh Assembly Elections 2018

D.NEWS DEHRADUN: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार के जोर पकड़ने के साथ सभी की नजर क्षेत्रीय दलों की भूमिका पर टिक कई है। सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की लड़ाई को क्षेत्रीय पार्टियां अपने लिए एक अवसर के तौर पर देख रही है। बसपा, सपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ रही है। बसपा से कांग्रेस व सपाक्स जैसे संगठन बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।

प्रदेश में चुनाव अमूमन दोनों पार्टियों के बीच हुए हैं। तीसरा मोर्चा या छोटे दल चुनाव परिणाम पर कोई खास असर नहीं डाल पाए हैं। पर इस बार स्थितियां कुछ बदली हुई हैं, यही भाजपा और कांग्रेस की चिंता है। पिछले चुनाव में बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने कई सीटों पर दस हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले की स्थिति में क्षेत्रीय पार्टी को मिला वोट अहम भूमिका निभाएगा।

बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और सपा के साथ सामान्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों का संगठन (सपाक्स) और जय युवा आदिवासी संगठन (जयस) भी किसी चुनौती से कम नहीं है। सपाक्स सवर्ण समाज का नेतृत्व कर रहा है। वही आदिवासी जयस से जुड़ रहे हैं। ऐसे में सवर्णों का संगठन सपाक्स से जहां भाजपा को नुकसान होगा, वहीं जयस कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकता है।

मध्य प्रदेश चुनाव रणनीति से जुड़े कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि से हमें लाभ होगा। वहीं, बसपा से गठबंधन न होने से सवर्ण मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है। उनके मुताबिक, किसान आंदोलन, बेरोजगारी, शिक्षा में घोटाला और सवर्णों की नाराजगी हमारे पक्ष में है। पर इसके लिए पार्टी को इन वर्गों को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनानी होगी।

कांग्रेस नेता मानते है कि मध्य प्रदेश चुनाव में क्षेत्रीय दलों से पार्टी को 50 से अधिक सीट पर नुकसान हो सकता है। आदिवासी संगठन जयस आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी का गणित बिगाड़ सकता है। उत्तर प्रदेश से लगे क्षेत्रों में बसपा और सपा का अच्छा खासा असर है। महाकौशल में गोंडवाना पार्टी का असर है। इसका क्षेत्र की करीब 10 सीट पर असर है। वर्ष 2003 के चुनाव में गोंडवाना पार्टी ने तीन सीटें जीती थी।

जीत-हार का कारण न बन जाए अन्य दल
तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में साफ हो गया है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर है। किसकी सरकार बनेगी, यह मात्र एक फीसदी मतों के अंतर से तय होंगे। ऐसे में किसी भी अन्य दल को मिला मत स्थिति को उलट सकता है।

बसपा : अध्यक्ष मायावती 
– 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं
– 25 सालों से मध्यप्रदेश विधानसभा में रहा है प्रतिनिधित्व
– 1993 में 11 विधायक चुनकर आए थे, मौजूदा विधानसभा में चार हैं
– 15 फीसदी राज्य की अनुसूचित जातियों में बसपा का खासा प्रभाव है
– उत्तर प्रदेश से सटे जिलों में पार्टी को सबसे अधिक सफलता मिलती है
– 6.29 फीसदी मत 2013 की विधानसभा चुनाव में बसपा को मिले थे

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी : अध्यक्ष दादा हीरासिंह मरकाम 
– 230 सीटों पर अकेले मैदान में उतरने का फैसला किया है
– 1 फीसदी कुल पड़े मतों में हिस्सेदारी थी 2013 के चुनाव में
– बालाघाट, मंडला जैसे जिलों में पार्टी का खासा प्रभाव है

सपा : अध्यक्ष अखिलेश यादव 
– 1993 से पार्टी की मौजूदगी मध्यप्रदेश में रही है, पार्टी तब एक सीट जीती थी
– 1998 में पार्टी के चार विधायक थे, जबकि 2003 में सपा सात सीटें जीतने में सफल हुई
– 2003 में पार्टी को सबसे अधिक 3.7 फीसदी मत मिले, लेकिन इसके बाद से गिरावट आई
– 2013 में पार्टी मात्र 1.2 फीसदी मत हासिल कर चुकी, एक बार फिर पैठ बनाने की कोशिश

जायस :  अध्यक्ष रविराज बघेल 
– जय आदिवासी युवा शक्ति (जायस) पहली बार चुनावी राजनीति में किस्मत आजमा रही
– 28 सीटे मालवा-निमार की हैं, जिनपर जायस ने प्रत्याशी उतारे, इनमें 22 एसटी के लिए आरक्षित
– 22 फीसदी कुल आबादी में हिस्सेदारी है आदिवासियों की, इनपर जायस का खासा प्रभाव है
– हालांकि, जायस अपने राष्ट्रीय संयोजक हीरालाल अलवा के कांग्रेस प्रत्याशी बनने से स्तब्ध

सपाक्स : अध्यक्ष हीरालाल त्रिवेदी 
– सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था है संगठन का पूरा नाम
– 230 सीटों (सभी) पर प्रत्याशी उतारने का कर चुकी ऐलान, पूर्व सरकारी कर्मी है इसके सदस्य
– हीरालाल त्रिवेदी हैं इसके अध्यक्ष, पार्टियों के कथित वोट बैंक की राजनीति के खिलाफ है मोर्चा

पंच दलों का गठबंधन 
– शरद यादव का लोकतांत्रिक जनता दल, भाकपा, माकपा, बहुजन संघर्ष दल और प्रजातांत्रिक समाधान पार्टी मिलकर चुनावी मैदान में हैं। इन दलों का मुख्य विरोधी भाजपा है। ऐसे में ये सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मोर्चाबंदी में जुटे हैं।

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