Breaking News

यहां भी होगा हेजल-पीकन नट का ‘चॉकलेटी’ अहसा

यहां भी होगा हेजल-पीकन नट का 'चॉकलेटी' अहसास, पढ़िए पूरी खबर

दुनियाभर में चॉकलेट में ड्राई फू्रट्स हेजल नट और पीकन नट की बढ़ती मांग के मद्देनजर उत्तराखंड में भी इन फलों को बढ़ावा देने की तैयारी है।

D.NEWS DEHRADUN: दुनियाभर में चॉकलेट में ड्राई फ्रूट्स ‘हेजल नट’ और ‘पीकन नट’ की बढ़ती मांग के मद्देनजर उत्तराखंड में भी इन फलों को बढ़ावा देने की तैयारी है। इससे जहां बंजर भूमि का उपयोग होने से ग्रामीण आर्थिकी सशक्त होगी, वहीं पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। इस कड़ी में बागवानी मिशन के तहत हेजल नट के लिए 15 लाख रुपये की योजना मंजूर की गई है। साथ ही अमेरिकी अखरोट पीकन नट को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

यूरोपीय ड्राई फ्रूट हेजल नट को लेकर अविभाजित उत्तर प्रदेश में भी चमोली के रामड़ी स्थित राजकीय उद्यान और अल्मोड़ा के चौबटिया में पहल की गई थी। रामड़ी में इसके लगभग 45 पेड़ हैं, जबकि चौबटिया में 14 के करीब। रामड़ी में ये फल दे रहे हैं और सालाना उत्पादन है 20 से 25 किलो।

इस बीच चॉकलेट में हेजल नट को लेकर मांग बढ़ी तो अब सरकार का ध्यान भी इसकी तरफ गया है। हेजल नट पौष्टिकता से लबरेज होने के साथ ही तीन से साढ़े तीन हजार रुपये किलो तक बिकता है। वहीं, पीकन नट की बात करें तो यह अखरोट की प्रजाति का अमेरिकी फल है। वर्तमान में उत्तरकाशी जिले के डुंडा राजकीय उद्यान और बनचौरा के आसपास के गांवों में इसके करीब 55 पेड़ हैं। वहां सालाना प्रति पेड़ 80-85 किलो उत्पादन मिल रहा है। समुद्रतल से 750 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर होने वाले पीकन नट के लिए भी उत्तराखंड में परिस्थितियां मुफीद हैं।

अब इन दोनों ड्राई फ्रूट्स को राज्य की ग्रामीण आर्थिकी से जोड़ने की तैयारी है। उद्यान विभाग के संयुक्त निदेशक (नर्सरी) डॉ. आरके सिंह के मुताबिक यह दोनों प्रजातियां न सिर्फ आर्थिक लिहाज, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी मुफीद हैं। प्रदेश में बंजर भूमि में यदि इनके पौधों का रोपण किया जाए तो भविष्य में ये ग्रामीण आर्थिकी का बड़ा जरिया बन सकते हैं। इनके पौधों का रोपण एक प्रकार से दीर्घकालिक निवेश है। इनके पेड़ सातवें साल से फल देना शुरू करते हैं।

डॉ. सिंह के अनुसार राजकीय उद्यान रामड़ी में हेजल नट के लिए बागवानी मिशन के तहत 15 लाख रुपये की योजना मंजूर की गई है। इसमें वहां हेजल नट के नए पौधे तैयार करने के साथ ही इनका रोपण भी किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि उत्तरकाशी के डुंडा और बनचौरा में पीकननट के 800 पौधे लगवाए गए हैं। धीरे-धीरे इस पहल को अन्य क्षेत्रों में भी ले जाया जाएगा।

अखरोट पर भी खास फोकस 

ड्राई फ्रूट्स को बढ़ावा देने की कड़ी में राज्य में अखरोट पर भी फोकस किया गया है। पिछले दो-तीन सालों से अखरोट की चांडलर, लारा, प्रॉन्क्टिव, फॉरनेट, पैरीसिएनी, मैलीनेसिया, फरनौर जैसी प्रजातियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। मंशा ये है कि यहां अखरोट उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा। आपको बता दें कि देश में 228.23 हजार मीट्रिक टन अखरोट का उत्पादन होता है। इसमें उत्तराखंड की भागीदारी सिर्फ 19.34 हजार मीट्रिक टन ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *