देहरादून। कश्मीर के लोकरंगों में रचे-बसे चिनार के पेड़ों की रंगत बयां करने को अनाम कवि की ये पंक्तियां काफी हैं। चिनार के दरख्त से…कभी हरे पत्तों की ताजगी लिए, फिर कभी उदास हो पीले रंग में रंग जाती हूं, फिर धीरे से पीले रंग में पगी हुई बैंजनी सी रक्तिमा ओढ़ लेती हूं। पत्तियों के रंग बदलने के गुण के कारण यह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। अब कश्मीर की भांति उत्तराखंड में भी चिनार की रंगत से पर्यटक अभिभूत होंगे। वन महकमे की अनुसंधान शाखा ने राज्य में ही इसकी पौध तैयार कर छावनी क्षेत्र रानीखेत में 200 पौधे लगाए हैं। प्रयोग सफल रहा तो दो साल बाद राज्य के अन्य पर्यटक स्थलों में भी कश्मीर की यह मिल्कियत रोपी जाएगी।
उत्तराखंड में बुरांस, बांज व काफल के पेड़ जिस तरह से यहां की लोक संस्कृति में गहरे तक रचे-बसे हैं, ठीक उसी तरह चिनार भी कश्मीरी लोक रंगों में समाया हुआ है। कश्मीर में चिनार (प्लेंटनस ओरिएंटलिस) के दरख्त वहां सैर को पहुंचने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। जम्मू-कश्मीर का राज्यवृक्ष चिनार वहां की एक बड़ी पहचान में शुमार है। यूं कहें कि पर्यटन को बढ़ावा देने में इसकी भी भूमिका है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।चिनार के खूबसूरत पेड़ों और पतझड़ के वक्त रंग बदलने वाली इसकी पत्तियों के प्रति सैलानियों के आकर्षण को देखते हुए वन महकमे ने उत्तराखंड में भी इसे पनपाने की ठानी। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक उत्तराखंड में नैनीताल में माल रोड व राजभवन क्षेत्र में सीमित दायरे में चिनार के पेड़ हैं। ये पेड़ 1890 में अंग्रेजों ने जम्मू-कश्मीर से लाकर लगाए थे। ये दरख्त भी नैनीताल आने वाले सैलानियों का ध्यान खींचते हैं आइएफएस चतुर्वेदी बताते हैं कि राज्य के अन्य क्षेत्रों में भी चिनार के पेड़ अस्तित्व में आएं, इसके लिए मार्च 2017 में पहल की गई। इस कड़ी में रानीखेत क्षेत्र की द्वारसौं नर्सरी में वानस्पतिक वर्द्धन (कलम) के जरिये पौधे तैयार करने का निर्णय लिया गया। पहल रंग लाई और वहां चिनार के 200 स्वस्थ पौधे तैयार हुए। अब एक से 10 अगस्त तक इन पौधों का रोपण छावनी क्षेत्र रानीखेत में माल रोड पर किया गया।पआइएफएस चतुर्वेदी के अनुसार दो साल तक रानीखेत में लगाए गए पौधों की देखभाल होगी। प्रयोग सफल रहने पर मसूरी, धनोल्टी, अल्मोड़ा, मुनस्यारी समेत अन्य पर्यटक स्थलों के साथ ही चारधाम यात्रा मार्गों पर भी चिनार के पौधों का रोपण किया जाएगा। इनके दरख्त बनने पर यहां भी सैलानी कश्मीर की तरह चिनार के पेड़ों की रंगत का लुत्फ उठा सकेंगे।