D.NEWS DEHRADUN ‘हिन्दुस्तान हिमालय बचाओ अभियान’ के तहत आयोजित संवाद में हिमालय के संरक्षण को लेकर गहन मंथन हुआ। विशेषज्ञों ने बढ़ते प्रदूषण को हिमालय का बड़ा दुश्मन बताया। कहा कि यदि समय रहते हिमालय को बचाने के लिए सजग नहीं हुए तो धरती पर जीवन असंभव हो जाएगा। पॉलीथिन का उपयोग कम करने पर जोर दिया गया। पॉलिथन को रिसाइकिल कर इससे पेट्रोल, डीजल और बिजली बनाने का सुझाव भी आया। उत्तराखंड में विकास का मॉडल प्रकृति के अनुरूप आकर्षक बनाने का सुझाव दिया गया। हिमालय संरक्षण के लिए आम लोगों की सहभागिता को जरूरी बताया गया। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के संभागार में शनिवार को आयोजित ‘हिन्दुस्तान संवाद’ में पर्यावरण और हिमालय पर शोध करने वाले विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। शुभारंभ हैस्को के संस्थापक पदमश्री डॉ. अनिल जोशी ने किया। उन्होंने ‘हिन्दुस्तान’ के अभियान की सराहना की और हिमालय को बचाने के लिए राष्ट्रीय मुहिम चलाने का सुझाव दिया। कहा कि हिमालय जीवन का आधार है, लेकिन वर्तमान में हिमालय संकट के दौर से गुजर रहा है। यह संकट न केवल उत्तराखंड बल्कि दुनिया कई देशों के लिए अच्छे संकेत नहीं है। परिचर्चा में विशेषज्ञों ने हिमालय के संकटों पर चिंता जताई और इनसे निपटने के सुझाव दिए। पॉलीथिन, वनाग्नि, वाहन से होने रहे प्रदूषण को हिमालय के लिए बड़ा खतरा बताया। पॉलीथिन का इस्तेमाल बंद करने को कहा। इसके साथ ही पॉलीथिन को रिसाइकिल कर इससे किफायती उत्पाद बनाने की सलाह दी। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि उत्तराखंड पृथक राज्य तो बन गया, लेकिन विकास मॉडल में कोई बलदाव नहीं आया। यहां के विकास के मॉडल में बदलाव की जरूरत है। इसे प्रकृति के अनुरूप आकर्षक बनाया जाए। वन नीति के सख्त नियमों पर गलत ठहराया और कहा कि इससे लोगों का पर्यावरण के प्रति अपनत्व खत्म हो रहा है। अपने खेत के पेड़ काटने और फसल उगाने के लिए अनुमति लेनी पड़ रही है। समापन पर पद्श्री डॉ. अनिल जोशी ने हिमालय बचाने की शपथ दिलाई।
पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी, संस्थापक, हैस्को, एसपी सुबुद्धि, सदस्य सचिव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, डॉ. वीबी माथुर, निदेशक,वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया, डॉ. आरबीएस रावत, रिटायर पीसीसीएफ, प्रोफेसर दुर्गेश पंत, निदेशक, यूसर्क, डॉ. पीएस नेगी, वैज्ञानिक, वाडिया भूविज्ञान संस्थान,डॉ. सनत कुमार, वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक, आईआईपी, डॉ. अशोक कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक, एफआरआई, डॉ. पीएन जौहर, वैज्ञानिक वाडिया भूविज्ञान संस्थान आदि रहे मौजूद।
Related Posts
