नई दिल्ली। धारा 370 हटाने के भारत के फैसले के खिलाफ दुनिया भर में कूटनीतिक पेशबंदी में लगे पाकिस्तान को खुद ही समझ नहीं आ रहा है कि वह चले तो चले किस दिशा में। एक तरफ विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी भी परोक्ष तौर पर हार स्वीकार करने लगे हैं तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के तर्को को खास तवज्जो नहीं मिलते देख उसके राजनयिकों के मतभेद भी सामने आने लगे हैं। पाकिस्तान की हताशा इसलिए भी ज्यादा है कि चीन और इस्लामिक देशों की तरफ से भी अभी तक उसे वैसा समर्थन नहीं मिला है जैसा कि वहां के हुक्मरान उम्मीद कर रहे थे। इस्लामिक देश इस मुद्दे पर चुप हैं वही शुरुआती नाराजगी दिखाने के बाद चीन का रुख बदला हुआ है। अफगानिस्तान में पाकिस्तान के राजदूत जाहिद नसरुल्लाह खान ने यह मानने से साफ इनकार कर दिया है कि भारत ने कश्मीर पर जो कदम उठाया है वह अफगानिस्तान में चल रहे शांति वार्ता को प्रभावित करेगा। दूसरी तरफ अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत असद एम खान का कहना है कि कश्मीर को लेकर विवाद बढ़ते देख पाकिस्तान को अपनी सेना पश्चिमी सीमा से हटा कर पूर्वी सीमा पर तैनात करनी पड़ सकती है। उन्होंने सीधे तौर पर इसे अफगानिस्तान में चल रहे शांति समझौते से जोड़ा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने भी यही बात कुछ दिन पहले कही थी। पाकिस्तान की कूटनीति को मंगलवार को दो और झटके लगे हैं। सबसे पहले तो भारत व चीन के विदेश मंत्रियों की सोमवार को हुई मुलाकात पर चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कश्मीर को लेकर कोई खास टीका टिप्पणी नहीं की गई है। इसमें कश्मीर का जिक्र करते हुए उम्मीद जताई गई है कि भारत दक्षिण एशिया में शांति व स्थायित्व के लिए रचनात्मक प्रयास करेगा। इस बैठक में चीन की तरफ से कश्मीर मुद्दा उठाया गया था लेकिन भारत ने बेहद ठोस शब्दों में अपना पक्ष रखा था कि यह उसका आतंरिक मामला है और धारा 370 हटाने से मौजूदा अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा में कोई बदलाव नहीं हुआ है। दूसरा झटका पोलैंड ने दिया है। पोलैंड अभी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का मौजूदा अध्यक्ष है। यही वजह है कि पाक के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी ने उनसे बात की और कश्मीर में हस्तक्षेप की गुजारिश की। लेकिन नई दिल्ली में पोलैंड के राजदूत ने एक मीडिया को दिए गए साक्षात्कार में साफ कर दिया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसे द्विपक्षीय आधार से ही सुलझाना चाहिए। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक किसी भी देश ने समग्र तौर पर पाकिस्तान के रुख का समर्थन नहीं किया है जबकि कई देश यह साफ तौर पर कह चुके हैं कि यह भारत का आतंरिक मामला है। यह बता रहा है कि कश्मीर पर पाकिस्तान का झूठ अब नहीं चल रहा। भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल के मुताबिक, ‘पाकिस्तान यह समझ नहीं पा रहा कि कश्मीर पर पूरी स्थिति बदल चुकी है। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर अब दोनो देशों के बीच बातचीत का मुद्दा नहीं रहा। अब भारत कश्मीर पर बातचीत के लिए तैयार होगा तो वह सिर्फ वहां होने वाले आतंकवाद पर बात के लिए तैयार होगा। कोई भी दूसरा देश पाकिस्तान के तर्क को अब स्वीकार नहीं करेगा। यही नहीं पाकिस्तान का यह तर्क भी टूट गया है कि अमेरिका ने कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की पेशकश की है। धारा 370 हटाने के भारत के फैसले के बाद अमेरिका ने बेहद सधी प्रतिक्रिया दी है जिसमें हस्तक्षेप का कोई जिक्र नहीं है। वाशिंगटन में भारत के राजदूत हर्ष श्रृंगला ने मंगलवार को साफ किया कि, मध्यस्थता का कोई भी प्रस्ताव अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से नही की गई है।
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