नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (Indian Space Research Organisation, ISRO) के मिशन चंद्रयान-2 की उल्टी गिनती रविवार से शुरू हो जाएगी। इसरो प्रमुख (ISRO chairperson) डॉ. के सिवन (Dr K. Sivan) ने शनिवार को बताया कि इस मिशन के 20 घंटे के काउंटडाउन की 14 जुलाई को सुबह 6.51 बजे से शुरू होने की उम्मीद है। यह 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन सेंटर से लॉन्च होगा। विदेशी मीडिया ने इस मिशन को बेहद चुनौतीपूर्ण बताया है। आइये जानते हैं इस मिशन से जुड़ी खास बातें…
15 मंजिल ऊंचा है बाहुबली
चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) भारत के सबसे ताकतवर जीएसएलवी मार्क-III (GSLV MK-III) रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा, जिसे बाहुबली नाम दिया गया है। शिवन ने बताया कि इस मिशन की सारी प्रक्रियाएं सुचारू रूप से जारी हैं। रॉकेट बाहुबली का वजन 640 टन है जो कि अब तक का सबसे ऊंचाई वाला लॉन्चर है। इसकी ऊंचाई 44 मीटर है जो कि 15 मंजिली इमारत के बराबर है। यह रॉकेट चार टन वजनी सेटेलाइट को आसमान में ले जाने में सक्षम है। इसमें तीन चरण वाले इंजन लगे हैं।
अब तक अछूता है चंद्रमा का यह क्षेत्र
जीएसएलवी मार्क-III अपने साथ 3.8 टन वजनी चंद्रयान-2 स्पेसक्रॉफ्ट ले जाएगा। बाहुबली के निर्माण में 375 करोड़ रुपये की लागत आई है। यह लगभग 16 मिनट की अपनी उड़ान में चंद्रयान-2 को पृथ्वी की 170×40400 मिलोमीटर कक्षा में फेंकेगा। चंद्रयान-2 के 6 या 7 सितंबर को चांद की सतह पर उतरने का अनुमान है। चंद्रयान-2 भारत का अति महत्वाकांक्षी मिशन है। चंद्रयान-2 अपनी तरह का पहला मिशन है जो चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र के उस क्षेत्र के बारे में जानकारी जुटाएगा जो अब तक अछूता है।
चंद्रयान-2 के तीन हिस्से
इस मिशन में चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। पहले भाग लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है। इसका वजन 1400 किलो और लंबाई 3.5 मीटर है। इसमें 3 पेलोड (वजन) होंगे। यह चंद्रमा पर उतरकर रोवर स्थापित करेगा। दूसरा भाग ऑर्बिटर होगा जिसका वजन 3500 किलो और लंबाई 2.5 मीटर है। यह अपने साथ 8 पेलोड लेकर जाएगा। यह अपने पेलोड के साथ चंद्रमा का चक्कर लगाएगा। तीसरा भाग रोवर है जिसका वजन 27 किलो होगा। यह सोलर एनर्जी से चलेगा और अपने 6 पहियों की मदद से चांद की सतह पर घूम-घूम कर नमूने जमा करेगा।
विदेशी मीडिया ने बेहद जटिल मिशन बताया
‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने इस मिशन को बेहद जटिल बताया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि यह मिशन चांद की सतह का नक्शा तैयार करने में मददगार होगा। इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक चांद पर मैग्नीशियम, एल्युमीनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, टाइटेनियम, आयरन और सोडियम जैसे तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके जरिए चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र के गड्ढों में बर्फ के रूप में जमा पानी का भी पता लगाने की कोशिश की जाएगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर भारत का जोर अपनी युवा आबादी की आकांक्षाओं को दर्शाता है।
चुनौतियां भी कम नहीं
धरती से चांद करीब 3,844 लाख किमी दूर है इसलिए कोई भी संदेश पृथ्वी से चांद पर पहुंचने में कुछ मिनट लगेंगे। यही नहीं सोलर रेडिएशन का भी असर चंद्रयान-2 पर पड़ सकता है। वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं। करीब 10 साल पहले अक्टूबर 2008 में चंद्रयान-1 लॉन्च हुआ था। इसमें एक ऑर्बिटर और इम्पैक्टर था लेकिन रोवर नहीं था। चंद्रयान-1 चंद्रमा की कक्षा में गया जरूर था लेकिन वह चंद्रमा पर उतरा नहीं था। यह चंद्रमा की कक्षा में 312 दिन रहा। इसने चंद्रमा के कुछ आंकड़े भेजे थे। बता दें कि चंद्रयान-1 के डेटा में ही चंद्रमा पर बर्फ होने के सबूत पाए गए थे।