राजनीति में कोई अपना नहीं है और कोई पराया नहीं है। कोई छोटा नहीं है कोई बड़ा नहीं है। जो कल तक कमजोर थे आज ताकतवर हैं। जो खुद को कभी सरकार मानते थे, वो आज अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रहे हैं। तेजी से बदलते वक्त के साथ सियासत का रंग भी बदलता है। यहां किसी चीज का मोल हो या न हो रिश्तों का कोई मोल नहीं होता। चुनावी जंग में बाप-बेटे, देवरानी-जेठानी, चाच-भतीजे की अदावत की कहानी तो कई बार देखी है। लेकिन सियासत का सबसे बड़ा परिवार ‘गांधी परिवार’ जिसे लेकर हमेशा से ये चर्चा होती है कि अगर सोनिया-राहुल और मेनका-वरुण एक साथ कांग्रेस में होते तो क्या होता? आज आपको बताएंगे कि आखिर क्यों मेनका गांधी और सोनिया गांधी के बीच इतनी दूरियां आ गई। मेनका गांधी द्वारा सिमी ग्रेवाल को उनके टॉक शो रेंडीज़वेस विद सिमी ग्रेवाल में दिए गए साक्षात्कार में मेनका ने अपने व्यक्तिगत जीवन और परिवार के बारे में कुछ छिपी बातों का खुलासा किया था। उन्होंने कहा था कि जब संजय की मौत हुई उस वक्त वरुण गांधी सिर्फ तीन महीने के थे। मेनका के लिए ये सदमा झेल पाना काफी मुश्किल था। संजय की मौत के बाद इंदिरा गांधी पूरी तरह से टूट चुकी थीं। वो अपनी राजनीतिक विरासत को लेकर बहुत चिंतित थी। राजीव गांधी को राजनीति में लाने और खाली पड़े स्पेस को भरने के लिए इंदिरा गांधी को राजीव गांधी के परिवार की मांगों को पूरा करना पड़ा। मेनका ने खुलासा करते हुए कहा कि उनकी मुख्य मांगों में से एक था कि मेनका को ये घर छोड़ना होगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो घर छोड़ देंगे। इसके साथ ही मेनका ने ये भी बताया कि राजीव गांधी का परिवार हमारे साथ एक टेबल पर नहीं बैठता था और एक समय ऐसा भी आया जब मेहमान के आने पर उन्हें दूसरे टेबल पर बैठना पड़ा। मेनका इंदिरा गांधी को भी उस दौर में असहाय मानती हैं। उन्होंने कहा कि हम दोनों ही किसी तीसरे इंसान के शिकार हुए। वो(इंदिरा गांधी)इसलिए क्योंकि उन्हें ये आदेश सुनना पड़ा और मैं इसलिए क्योंकि मुझपर बीत रही थी। सोनिया गांधी के बारे में बात करते हुए मेनका ने कहा कि जहां तक मैं अपनी जेठानी को जानती हूं ये निजी रुप से कोई विवाद नहीं बल्कि संपत्ति की वजह से सारा कुछ हुआ था। क्योंकि ये सारी मांगे जो रखीं गई कि मुझे घर छोड़कर जाना होगा, मुझे कुछ नहीं दिया जाएगा और मैंने सारा कुछ कहे अनुसार किया।