अमृतसर : प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत में 1914 के दौरान 13 लाख से ज्यादा भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेना के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ने के लिए जहाजों के जरिए विदेश ले जाए गए थे। अंग्रेजों ने इन सैनिकों को मुख्य रूप से पंजाब और उत्तर पश्चिम फ्रंटियर इलाकों से भर्ती किया था। युद्ध के लिए भेजे गए भारतीय सैनिकों में से 75,000 सैनिक कभी अपने वतन नहीं लौट पाए। वे सुदूर की युद्धभूमि में लड़ते हुए शहीद हो गए। भारत के 74वें स्वतंत्रता दिवस को मनाने की जोर-शोर से चलने वाली तैयारियों के बीच HistoryTV18 एक सच्चे शोध पर आधारित घंटे भर की डाक्युमेंटरी का प्रीमियर करने जा रहा है, जो प्रथम वैश्विक संघर्ष में भारत की भूमिका की पड़ताल करती है। यह हजारों भारतीय परिवारों द्वारा किए गए त्याग और बलिदान को चिह्नित करती है और उसका दस्तावेजीकरण भी करती है, जैसे कि रसूलपुर, अमृतसर के सरदार लेफ्टिनेंट हरनाम सिंह भट का संघर्ष इसमें शामिल किया गया है। 15 अगस्त 2020 को स्वतंत्रता दिवस पर रात 9 बजे प्रीमियर की जा रही ‘India’s Forgotten Army’ का उद्देश्य भारत के गुमनाम नायकों को इतिहास में उनके यशस्वी और यथोचित स्थान को दिलाना है।
सन् 1918 की समाप्ति होते-होते जब बंदूकें शांत हुईं, तब तक यह युद्ध छिड़े लगभग पांच वर्ष बीत चुके थे। इसे “तमाम युद्धों का खात्मा करने वाला युद्ध”, द ग्रेट वार की संज्ञा दी गई थी। इसने इतने विशाल पैमाने पर विनाश रचा कि अधिकतर लोगों ने मान लिया था कि मानव जाति अब दोबारा कभी भी युद्ध नहीं करना चाहेगी। दोनों पक्षों से विभिन्न राष्ट्रीयताओं के लाखों सैनिकों ने लड़ाई लड़ी और मारे गए। हालांकि विदेशी जमीन और दुनिया भर में तैनात किए गए भारतीय सैनिकों के बारे में बहुत कम ज्ञात है। उस वक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं को लगा था कि अंग्रेजों के युद्ध अभियान में अपने लोगों को भेजने से राष्ट्र को स्वायत्तता मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। लेकिन उन उम्मीदों पर पानी फिर गया। इसके बजाए साम्राज्यवादी ग्रेट ब्रिटेन ने युद्ध की जीत में भारत के यथोचित योगदान को स्वीकार करने से ही इनकार कर दिया! लोगों को भुला दिया गया। समय की धूल में उनके असाधारण बलिदान खो गए और वे इतिहास में भी कहीं दर्ज नहीं हुए।
भारतीय सांसद और संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व अंडर-सेक्रेटरी-जनरल शशि थरूर कहते हैं- “ब्रिटिश साम्राज्य के किसी भी उपनिवेश ने इतने लोग नहीं गंवाए, जितने कि हमने, इसके बावजूद मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इस बलिदान को लगभग नजरअंदाज कर दिया गया। भारतीयों ने विशाल पैमाने पर कुरबानियां दी थीं। उनके कुछ पत्र, जो सभी सेंसर कर दिए जाते थे, पढ़ कर कलेजा फटने लगता है।“
इस डाक्युमेंटरी में सैन्य इतिहासकार और लेखक राणा छीना की भारतीय घुड़सवार सैनिक सरदार लेफ्टीनेंट हरनाम सिंह भट के पड़पोते के बेटे के साथ हुई मुलाकात को दिखाया गया है। उनकी अपने हाथों से लिखी गई डायरी के पन्ने देख कर दर्शक दुनिया भर में एक ऐसा युद्ध लड़ने वाले लाखों सैनिकों में से एक के निजी अनुभवों से रूबरू होंगे, जो उनका युद्ध था ही नहीं! यह फिल्म उनकी बहादुरी के मेडल, घुड़सवार सैनिकों की तलवारें और ऐसी अन्य कई कलाकृतियां प्रदर्शित करती है, जिन्हें एक सदी से भी ज्यादा समय से संरक्षित रखा गया है।
15 अगस्त को रात 9 बजे प्रीमियर की जा रही ‘India’s Forgotten Army’ उन भारतीय सैनिकों के साहस और बलिदान का पता लगाने और उसका दस्तावेजीकरण करने का प्रयास है, जिन्हें अमानवीय परिस्थितियों में रहने और लड़ने के लिए जहाजों में भर कर सुदूर देशों तक ले जाया गया था। युद्ध की कहानी सुनाने के लिए फिल्म में भुक्तभोगी व्यक्ति के वर्णन का इस्तेमाल किया गया है, और उन हालात को भी दिखाया गया है, जिनका सामना भारतीय सैनिकों को करना पड़ा। इसका पता उनके द्वारा अपने परिवारों को लिखे गए उनके पत्रों से चलता है। दर्शक शीर्ष व्यक्तित्वों के साथ-साथ उन सैनिकों के वंशजों से भी दास्तानें सुनेंगे, जिन्होंने यह युद्ध लड़ा था। डाक्युमेंटरी दर्शकों को दुनिया भर की युद्धभूमि, स्मारक और युद्ध अभिलेखागार भी दिखाती है तथा सैन्य विशेषज्ञों व इतिहासकारों को साथ लेते हुए छुपे तथ्यों को उघारती है और उस भूली-बिसरी दास्तान को दोबारा सुनाती है। यह डाक्युमेंटरी टी.एस. छीना द्वारा लिखी गई पुस्तक- ‚वर्ल्ड वार सिख: मेमोयर्स ऑफ एन इंडियन कैवलरीमैन 1913-45‘ से प्रेरित है।
शनिवार, 15 अगस्त 2020 को स्वतंत्रता दिवस पर रात 9 बजे प्रीमियर की जा रही ‘India’s Forgotten Army ’ देखिए केवल HistoryTV18 पर।