पूज्य बापू ने कथा के चौथे दिन पहलगाम में हुई घटना पर की चर्चा

वाराणासी । पूज्य बापू ने कथा के प्रारम्भ में पतित पावनी माता भागीरथी, भगवान विश्वनाथ के दिव्य ज्योतिर्लिंग, ब्रह्माण्ड भण्डोदरी माता अन्नपूर्णा तथा काशी क्षेत्र के समस्त दिव्य स्थलों की दिव्यता को नमन करते हुए, उपस्थित समस्त श्रोतागण तथा उनके पावन चरणों में बापू ने वंदन किया। मनोरथी परिवार के दिवंगत वडिल श्री दीनदयालजी की चेतना को भावपूर्वक याद किया, जो साधु सेवी, कथा सेवी, गंगा सेवी तथा शिव सेवी थे।
श्रीनगर में कथा के चौथे दिन पहलगाम में दंगाइयों ने हमारे देश की बहन-बेटियों की मांग से सिंदूर छीन लिया और हंगामा मच गया। व्यासपीठ के विवेक से प्रेरित होकर कथा को पांचवें दिन के बाद स्थगित कर दिया गया। उसके बाद देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी ने सेना के तीनों अंगों को इस जघन्य कृत्य के दोषियों को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू करने का समय, स्थान और व्यवस्था तय करने की खुली छूट दी और इस तरह हमने एक सफल प्रयोग करके दिखाया।
बापू ने कहा कि उन्हें ऑपरेशन सिंदूर शब्द बहुत पसंद है इसलिए उन्होंने नंदप्रयाग की कथा में मानस सिंदूर विषय पर कथा करने की इच्छा व्यक्त की। फिर राजगीर की कथा समाप्त करके लौटते समय आपने सोचा कि यदि परमात्मा का मंगल विधान होगा, तो उत्तराखंड के हनुमंतपूंछ में 7 जून को स्थगित की गई कथा 14 से 22 जून तक काशी में हो सकती है! इस प्रकार मनोरथी परिवार और सतुआ बाबा से वार्तालाप चलता रहा। बापू ने कहा -आखिरकार ठाकुरजी ने सुविधा कर दी कि आज उन्होंने मुझे मुक्त कर दिया, ताकि काशी में कथा गायन शुरू हो सके! इस प्रकार नालंदा से लौटकर काशी के रुद्राक्ष हॉल में कथा करने का बापू का सपना पूरा हुआ। बापू ने कहा कि मैं इस घटना को परमात्मा का मंगल विधान मानता हूँ। कथा संवाद की भूमिका में प्रवेश करते हुए पूज्य बापू ने कहा कि दोनों मुख्य पंक्तियाँ सीतारामजी के विवाह की हैं। जनकपुर के राजपुरोहित शतानंदजी और अयोध्या के गुरु वशिष्ठजी महाराज दोनों लोक और वेदों के रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह समारोह संपन्न कराते हैं। जिस समय भगवान राम से माता सीता की मांग में सिंदूर दान करने को कहा जाता है, उस समय तुलसीदासजी ने यह चौपाई लिखी है। बापू ने कहा कि सिंदूर शब्द मानस में केवल एक बार ही आया है। कुछ शब्द विरल – अनूठे होते हैं!
इस अवसर पर बापू ने कहा कि तुलसीदासजी ने भी पार्वती मंगल में शिव-पार्वती के विवाह के अवसर पर सिंदूर दान का संकेत दिया है। इसी प्रकार ष्जानकी मंगल में भी सिंदूर का उल्लेख है।

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