देवभूमि जनसंवाद न्यूज़ देहरादून : उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि, अगर मैं ₹.300 की घड़ी पहनूं या ₹.30000 की, दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी।
मेरे पास ₹.300 का बैग हो या ₹.30000 का, इसके अंदर के सामान में कोई परिवर्तन नहीं होंगा।
मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।
आख़िर में मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करूं या इक्नामी क्लास में, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुंचूंगा।
मित्रो, इसीलिए अपने बच्चों को बहुत ज्यादा अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि, उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं, और जब बड़े हों तो चीजों के महत्व को देखें, उसकी कीमत को नहीं।
मित्रो, फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था:
* ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं, जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों की जेब से पैसा निकालना होता है, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग लोग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं।
* क्या यह आवश्यक है कि मैं आईफोन लेकर चलूं फीरू, ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें?
* क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac’d या KFC में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?
* क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन मित्रो के साथ उठक-बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ, ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ?
* क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike का ही पहनूं ताकि, High Status वाला कहलाया जाऊँ?
* क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ, ताकि सभ्य कहलाऊं?
* क्या यह आवश्यक है कि मैं Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?
नहीं मेरे मित्रो:
* मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं,
* यु तो मै बाजार का नहीं घर का ही सादा खाना पसंद है पर कभी कभी दोस्तो के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ।
* यदि भुख लगे तो किसी सफाई युक्त ठेले से ले कर खाने में भी कोई अपमान नहीं समझता।
* चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है।
लेकिन,
* मैंने ऐसे लोगो को भी देखे हैं जो एक ब्रांडेड जूतों की जोड़ी की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।
* मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac’d के बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।
* बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि बहुत सारा पैसा ही सब कुछ नहीं है, जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं, वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।
* भारत में मानव मूल की असली कीमत उसकी नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सहानुभूति और भाई-चारा है, ना कि उसकी मौजुदा शक्ल और सूरत।
* सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति में मेरी जगह कौन कार्य करेगा?
* समस्त विश्व में सन्नाटा छा गया, किसी के पास कोई उत्तर नहीं था, तभी कोने से एक आवाज आई, छोटे से दीएं ने कहा, “श्रीमान् मै हूं ना” मैं अपना पूरा प्रयास करुंगा।
मित्रो, आपकी सोच में ताकत और चमक होनी चाहिए, छोटा – बड़ा होने से फर्क नहीं पड़ता, सोच बड़ी होनी चाहिए, मन के भीतर एक दीप जलाईये और सदा मुस्कुराते रहिए, यह ज्ञान नही अनुभव है, बाकी आप सभी समझदार भारतिय है, अब लेखनी को विराम, फिर किसी ओर विषय पर बाद में चर्चा रहेगी।
जियें और जीने दे।