वन विभाग ने विकसित किया उत्तराखंड में भारत का पहला लाइकेन पार्क

देहरादून : उत्तराखंड के वन विभाग ने पिथौरागढ़ जिले में कुमाऊँ के मुनस्यारी में भारत का पहला ‘कवक पार्क’ (lichen park) विकसित किया है। लाइकेन हिमालय में 5000 मीटर तक की ऊँचाई पर उगने वाली एक महत्वपूर्ण प्रजातियों में से हैं, क्योंकि ये प्रदूषण के स्तर के सबसे अच्छे जैवइंडाइटर माने जाते हैं।


इस परियोजना का उद्देश्य विभिन्न लाइकेन प्रजातियों के वितरण, उनके निवास, उनके रूपात्मक और शारीरिक पहलुओं, सर्वेक्षण और साहित्य की समीक्षा, प्रजातियों का संस्थापन, मानव जाति और जलवायु कारकों सहित उनके रहने के स्थान पर होने वाले वर्तमान खतरों का अध्ययन करना और उपयुक्त संरक्षण रणनीतियों को तैयार करना है। इन जुरासिक-युग लाइकेन प्रजातियों का इस्तेमाल भोजन, इत्र, रंजक और पारंपरिक दवाओं में किया जाता है।

उत्तराखंड में लाइकेन की लगभग 600 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इसके हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में क्रमशः 503 और 386 प्रजातियां हैं।


उत्तराखंड के इन इलाकों पाई जाती है लाइकेन:-

चमोली

चम्पावत

पिथोरागढ़

नैनीताल

देहरादून


राज्य में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख लाइकेन प्रजातियाँ है:-

Parmotrema Pertatum

Usnea Lognissima

Lecanora Subfuseescens

Sarcogyne Privigna

Arthonia Impolitella

Acarospora Fusca

Acarospora Oxytona

Polysporina Dubia


क्या है लाइकेन?


कवक (लाइकेन) एक प्रकार की वनस्‍पति है, जो यह पेड़ों के तनों, दीवारों, चट्टानों और मिट्टी पर पनपता है। ये कई रंगों, आकारों और रूपों में पाए जाते हैं। ये कभी-कभी पौधे की तरह दिखाई पड़ते हैं लेकिन लाइकेन पौधे नहीं होते हैं। लाइकेन का आकर में छोटी, पत्ती रहित शाखाएं, फ्लैट पत्ती जैसी हो सकती हैं।


ये पृथ्वी पर मौजूद सबसे पुरानी जीवित चीजों में से एक हैं, यह कई स्थानों पर पनपते, जिनमें कुछ बेहद चरम स्थान आर्कटिक, टुंड्रा, गर्म शुष्क रेगिस्तान चट्टानी तटों, विषाक्त ढेर, छतें, नंगे चट्टानें, दीवारें, उजागर मिट्टी की सतह हैं जहां यह आसानी से पाए जाते है।

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