राजयोग की सहज विधि जीवन जीने की कला सिखातीः राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी डॉ. निर्मला

देहरादून। प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के मुख्य सेवाकेन्द्र, सुभाषनगर में राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी प्रेमलता बहन की द्वितीय पुण्य स्मृति दिवस पर  ‘मुस्कान का मीलों लम्बा सफ़र‘ शीर्षक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी डॉ. निर्मला बहन ने शुभकामनायंे देते हुये कहा कि पे्रम बहनजी ने अपनी नम्रता और स्नेह भावना से संत महात्माओं की आध्यात्मिक सेवा की। उनके चेहरे की मुस्कान का वर्णन ही नहीं करें, बल्कि उस मुस्कान का कारण जानकर, उससे सीख  भी लें। जीवन के सफ़र में अनेक मुश्किलातें आती हैं। आज कितने ही मनभेद-मनमुटाव हैं। पर परमात्मा को जानने से, उनसे मिलन मनाने से ज्ञान, शांति, पवित्रता, सुख, प्रेम, आनंद और शक्ति मिलती है।  इससे जीवन में प्रसन्नता आती है। यही राजयोग की सहज विधि, जीवन जीने की कला सिखाती है। कितनी ही जिम्मेवारियाँ होते भी परमात्मा का हाथ-साथ होे, यह ज्ञान हो कि जो होता है, उसमें कल्याण है, तो हल्के रहेंगे। सबका अपना- अपना पार्ट है। सबके साथ स्नेह होगा तो किसी की गाली, गलत व्यवहार में भी खुशी गुम नहीं होगी। खुशी इतनी वैल्युबल है, उसे संभाल कर रखें, किसी को भी गुम न करने दें। तो मुस्कान सदा कायम रहेगी। स्वामी देवानंद सरस्वती जी महाराज (अध्यक्ष-प्रभु हरनाथ मंदिर, हरिद्वार) ने आशीर्वचनों में कहा कि प्रेमलता बहन जी विशाल पुण्यात्मा थीं जिनके सान्निध्य से शांति की अनुभूति होती थी। मानव को मानव बनाने में सेवारत थीं। जीवन में मुस्कान लाने के लिये उन्होंने बताया अपने विकारों को छोड़ने की ताकत पैदा करने से जीवन में निभर्यता आती हैै। अज्ञानता के अंधकार को दूर करने से तथा आध्यात्मिक संबंध जोड़ने से खुशी आती है। प्रेमलता बहन जी का मार्गदर्शन और संकल्प सदा जीवित है। परमात्मा और आत्मा के स्वरूप को जानने से आन्तरिक खुशी मिलती है। यहाँ जीव को लक्ष्य को पाने का सहज रास्ता बताया जाता है। राजयोगी ब्रह्माकुमार अमीरचंद (ज़ोनल हैड – पंजाब, ब्रह्माकुमारीज़) ने कहा कि प्रेम बहन जी को सदा निश्चिंत देखा। जैसे कार्य हुआ ही पड़ा है। उनके चेहरे की खुशी साधारण नहीं थी बल्कि ईश्वर से मिलने की, उसे जानने की, उस परमपिता के प्यार का अनुभव करने की थी। गृहस्थ जीवन बहुत कठिन तपस्या है, इस सफ़र में ईश्वर को साथी बना लें। दूसरों के शब्दों व व्यवहार से प्रभावित होकर दुःखी न हों। तो खुशी कायम रह सकेगी। स्वामी स्वतंत्र मुनि जी महाराज (अध्यक्ष-वेदांत साधना कुटीर, ऋषिकेश) ने आशीष देते हुये कहा कि मुस्कान मात्र होंठों की ही नहीं, मन की होती है। आदरणीया प्रेमलता बहन जी शक्ति स्वरूपा, आध्यात्म की पथ प्रदर्शक थीं। उन्होंने स्वयं को तपस्या की अग्नि में जलाकर दूसरों की आध्यात्मिकता की क्षुधा शांत किया। ऐसी विदूषी बहन जो जाने के बाद भी अपने विचारों और किये गये कर्माें से आत्माओं को रोशन व धन्य कर रही हैं। माधवा सिंह कंडारी ने कहा कि प्रेमलता बहनजी को सरलता-सफलता की मूर्त देखा। आशाओं और तृष्णाओं को त्याग करने से सच्ची खुशी प्राप्त की जा सकती है। हमारे साथ अच्छे कर्म व पुण्य ही जायंेगे।  तो परोपकार करें। राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मीना बहनजी ने (सेवाकेंद्र प्रभारी-हरिद्वार, ब्रह्माकुमारीज़) ने स्वागत करते हुये श्रद्धेया राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी  प्रेमलता बहन जी के गुण व सामाजिक योगदान बताये। उन्होंने कहा कि वे सदा परमात्म लगन में मगन रहने वाली, मृदु-स्वभावी, मित-मृदु भाषी, सदा विश्व कल्याणकारी, सर्व के प्रति शुभ कामना – शुभ भावना रखने वाली, पवित्रता की मूरत थीं। ज्ञान-योग-धारणा-सेवा में बहुत तीव्र  पुरुषार्थी बनीं। सभी वत्सों की पालना – प्यार की निमित्त बनी सदा स्नेह की मुस्कान बिखेरती रहीं। उनकी प्रेरणा और शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाकर ही हमारी ओर से उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हम किसी को कुछ न भी दें, सिर्फ़ मुस्कान दे दें, तो हमारे जीवन में भी खुशियाँ आ जायेंगी।  राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मंजू बहन जी (सबज़ोनल हैड – ब्रह्माकुमारीज़, देहरादून) ने सभी का धन्यवाद देते हुये  कहा कि परम श्रद्धेय प्रेमलता बहनजी का परमात्मा पर इतना अटूट विश्वास कि कोई भी कार्य रुक नहीं सकता। यही विश्वास उनकी चिर मुस्कान का साधन था। ऐसा विश्वास हम भी पैदा करें।

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