रुद्रपुर। भारत सरकार के स्वस्थ्य मंत्रालय द्वारा इसी वर्ष 24 फरवरी को शुरु किये देश व्यापी अभियान ‘नेशनल एक्शन प्लान – वायरल हैपाटाईटिस’ के अंतर्गत वर्ष 2030 तक देश से हैपाटाईसिस को पूरी तरह मिटाने की कवायद शुरु हो चुकी है परन्तु इस कार्यक्षेत्र से जुड़े डाक्टर्स और प्रोफेशनल्स मानते है कि इस दिशा में लोगों मे अभी ओर अधिक जागरुकता पैदा करने की आवश्यकता है विशेषकर इस रोग के आरम्भिक दौर के लक्षणों की जिसकी अनदेखी बाद में जानलेवा बन जाती है। 28 जुलाई को विश्व हैपेटाईटिस दिवस की कड़ी में आज एक प्रैस वार्ता के दौरान रुद्रपुर के जाने माने गेस्ट्रोइन्ट्रोलोजिस्ट डा. गौरव अग्रवाल, (एमडी) इंटरनल मैडीसन, ने इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों और इस बीमारी की गहनता से विचार किया। डा गोयल ने बताया कि चीन के बाद भारत दूसरा देश है जिसकी अत्याधिक जनसंख्या संक्रमित हेपाटाईटिस बी से पीड़ित है जोकि एक गहन चिंता का विषय है। एनसीबीआई के आंकड़ों के अनुसार भारत में ही करीब 50 मिलियन लोग हैपाटाईटिस बी जबकि 12 से 18 मिलियन लोग हैपाटाईटिस सी से पीड़ित हैं। यह देश के लिये जटिल समस्या बनती जा रहा है क्योकि यह एक कुख्यात संक्रामक वायरस है। कई लोगों को तो बिल्कुल भी नहीं पता चलता की वे इस वायरस को साथ लेकर चल रहे हैं। इसलिये इसके बढ़ने का खतरा सदैव बना रहता है। उन्होंनें बताया कि हैपाटाईटिस बी और सी यदि समय चलते ठीक नहीं किया गया तो यह निकट भविष्य में सिरोहसिस और लीवर कैंसर जैसी जानलेवा जटिलताये पैदा कर सकता है। इसलिये टीकाकरण और समय चलते ऐंटी वायरल ट्रीटमेंट हैपाटाईटिस की रोकथाम के लिये अत्यंत आवश्यक है। डब्लयूएचओ-सियेरो के अनुसार विश्व भर में 325 मिलियन लोग इससे ग्रस्त हैं। दक्षिण पूर्वी ऐश्यिा क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष करीब 4,10,000 मौतें वायरल हैपाटाईटिस के कारण होती है जिसमें से 81 फीसदी मौतें जटिल हैपाटाईटिस बी और सी के कारण होती है। यह दोनो वायरस ग्रस्त व्यक्ति के खून या किसी भी प्रकार के तरल पदार्थ से दूसरों में फैलता है । यह रोग संभोग, ग्रसित सुई या सिरिंज को सांझा करने, किसी भी दूषित मैडिकल उपकरण के उपयोग, जन्म के दौरान पीड़ित मां द्वारा उसके बच्चों में फैल सकता है। हैल्थकेयर वर्कर्स अकसर इस रोग के चपेट में आ जाते हैं क्योंकि वे मरीजों और ग्रसित उपकरणों के सदैव संपर्क में रहते हैं। डा अग्रवाल ने बताया कि भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय इस दिशा में इस रोग की रोकथाम के लिये व्यापक कदम उठा रहा है और देश में हैपाटाईटिस के मामलों में कटौती हुई है। इन पहलों में बचपन के दिनों में टीकाकरण में हैपाटाईटिस का वैकसीन को हिस्सा बनाना और सिविल हस्पतालों में संक्रमित रोगियो का उपचार, सरकारी हस्पतालों में निशुल्क दवाईयां प्राप्त करने का प्रावधान आदि शामिल है।हैपाटाईटिस बी और सी प्रभावी तरीके से मैनेज्ड किया जा सकता है परन्तु एक बार संक्रमण होने पर पूर्ण ईलाज का आश्वासन नहीं है। एचबीवी और एचसीवी इनफैक्शन के कई मामले में लक्षण दिखते नहीं है। हलांकि कुछ मरीज बीमारी के अंतिम पड़ाव में रोग के लक्षण दिखाते हैं जिसमें त्वचा और आंखों में पीलापन (पीलिया), गाढा पेशाब, बहुत ज्यादा थकना, चक्कर व उल्टी आना, पेट में दर्द रहना, जलन रहना, एन्सेफैलोपैथी आदि शामिल है। मरीज की क्रोनिक बीमारी उसकी आयु से पता चलती है जब उसे इसका सकं्रमण होता है। क्रोनिक दशा में छह साल से भी कम उम्र के बच्चे इस रोग से ग्रस्त हो सकते हैं। 80 से 90 फीसदी शिशुओं में एक साल के भीतर ही क्रोनिक इनफेक्शन पनप जाता है जबकि 30 से 50 फीसदी छह साल से भी कम उम्र में यह सकं्रमण पनप जाता है। युवास्था में सक्रंमण की दर पांच फीसदी है जबकि 20 से 30 फीसदी व्यस्क में यह सक्रंमण इतना फैल जाता है कि उनमें सिरोहसिस और लीवर कैंसर क विकसित हो जाता है।