गोपेश्वर। रैतोली गांव के बुजुर्गों की वर्षों पूर्व दी गई सीख गांव में पेयजल स्रोत के संरक्षण के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है। जहां आस-पास के कई गांवों के ग्रामीण पेयजल योजनाओं के भरोसे प्यास बुझा रहे हैं। वहीं गर्मी के मौसम में भी इस गांव का प्राकृतिक पेयजल स्रोत भरपूर पानी दे रहा है। ग्रामीणों द्वारा स्रोत के चारों ओर सौंदर्यीकरण किया गया है। स्रोत को सूखने से बचाने को ग्रामीणों ने इसके चारों तरफ हरे पेड़ लगाए गए हैं। ग्रामीण बताते हैं कि प्रत्येक दो माह में श्रमदान कर स्नोत के चारों तरफ सफाई अभियान चलाया जाता है। चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 26 किमी दूर विकासखंड दशोली के रैतोली गांव में पचास से अधिक परिवार रहते हैं। गांव तक मुख्य सड़क मार्ग से वाहन के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। इस सब के बीच इस गांव की खास बात यह है कि गर्मी का मौसम हो या सर्दी का। यहां का प्राकृतिक पेयजल स्रोत हमेशा सदाबहार रहता है। ग्रामीणों की मानें तो इसमें किसी सरकारी विभाग का योगदान नहीं है। यह गांव के उन बुजुर्गों की दी हुई सीख है, जिन्होंने दो दशक पूर्व ग्रामीणों को स्नोत संरक्षण के लिए श्रमदान की सीख दी। ग्रामीण बुजुर्ग हरिकृष्ण मिश्र, राजेंद्र सिंह नेगी आदि के मुताबिक पहले श्रमदान का रिवाज था। गांव में पेयजल की सफाई हो या फिर सफाई अभियान सभी कार्य श्रमदान से ही हुआ करते थे। बहादर सिंह खाती, कुंदन सिंह नेगी, अमर सिंह, केदार सिंह, बाग सिंह, पदमेंद्र सिंह आदि बुजुर्गों अब हमारे बीच नहीं हैं। श्रमदान करने की उनकी सीख ने आज गांव के प्राकृतिक पेयजल स्रोत को मानो संजीवनी दी है। आज आसपास के क्षेत्रों में गर्मी से जगह-जगह स्रोत सूखने लगे हैं, लेकिन इस गांव के स्रोत में बहती पानी की धार बुजुर्गों की स्रोत के संरक्षण की दी हुई सीख को साकार कर रही है। रैतोली गांव के ग्रामीणों ने स्वच्छ भारत अभियान का नारा बुलंद किया है। गांव में समय-समय पर सफाई अभियान चलाया जाता है। गांव से दूर कूड़ादान भी बनाया गया है। जहां ग्रामीण घर में एकत्रित कूड़े का निस्तारण करते हैं।
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January 16, 2025
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